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कण्व आश्रम

  कण्व  आश्रम     प्राचीन भारत   में ' कण्व ' नाम के अनेक व्यक्ति हुए हैं। इनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध वह  महर्षि कण्व थे , जिन्होंने   अप्सरा   मेनका   के गर्भ से उत्पन्न ऋषि   विश्वामित्र   की कन्या   शकुंतला   को पाला और बड़ा किया । देवी   शकुन्तला   के धर्मपिता के रूप में महर्षि कण्व की अत्यन्त प्रसिद्धि है।ये उस समय में कुलाधिपति थे । विश्व का पहला गुरूकुल इनका ही था। पुराणों के अनुसार कण्व आश्रम में दस हजार ऋषि शिक्षा ग्रहण करते थे। वीकीपीडिया के अनुसार  कण्व   या   कण्व  (  संस्कृत  : कण्व   कण्व  ), जिसे   कर्णेश भी कहा जाता है ,  त्रेता युग   के   एक प्राचीन   हिंदू   ऋषि थे         ऋग्वेद के कुछ सूक्त इनके   बताए गए हैं।   वह   अंगिरसों   में से एक थे ।   उन्हें घोरा का पुत्र कहा गया है , लेकिन यह वंश प्रगथ कण्व का है , जो बाद के कण्व थे , जिनमें से कई थे।    हालाँकि ,  पौराणिक साहित्य   में उनके अन्य अलग-अलग वंश हैं , एक अप्रतिरथ के पुत्र और राजा   मतिनारा   के पोते के रूप में , और दूसरा अजमीध के पुत्र के रूप में , जो तंसु के भाई तानसु की नौवीं पीढ़ी के वंशज

नगीने का लकड़ी पर नक्काशी का कारोबार

    अशोक मधुप   नगीना आज लकड़ी पर नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है, किंतु   कभी   नगीना की प्रतिष्ठा इसकी लकड़ी की नक्काशी के बजाय इसके धातु उद्योगों पर थी ।   इसे अक्सर बंदूक बनाने की कला के साथ जोड़ा जाता था। माचिस की तीलियों को   नक्काशीदार लकड़ी के चार डिब्बों में रखकर   1867 की पेरिस प्रदर्शनी में भेजा गया था । प्रत्येक डब्बे   को 375 फ़्रैंक की कीमत पर बेचा गया था । यह स्थान लंबे समय से धामपुर और नजीबाबाद की तरह   हथियारों के बनाने के लिए प्रसिद्ध था ।*   आज   बिजनौर जिले की सबसे महत्वपूर्ण पुराने समय की औद्योगिक कला नगीने की लकड़ी पर        नक्काशी है । ऐसा कहा जाता है कि यह शिल्प मुल्तानी व्यापारियों द्वारा    नगीना   लाया गया। नगीना के कारीगर पीढ़ियों से आबनूस की गनस्टीक ,खाट ,पाये   और मसनद बनाते रहे हैं । ये   आमतौर पर उन्हें सतही पुष्प पैटर्न से सजाते हैं। बाद में इन कारीगरों ने   कैबिनेट बनाने में उच्च दक्षता हासिल कर ली । यह उद्योग ज्यादातर मुसलमान कलाकार और उद्योगपतियों     के हाथों में है और डिजाइन , ज्यामितीय या पुष्प , छेनी द्वारा नाजुक और स्पष्ट राहत में बनाए

कुर्अतुल ऐन हैदर का भारत

  कुर्अतुल ऐन हैदर का भारत  अशोक मधुप कुर्अतुल ऐन हैदर उर्फ  एनी आपा पूरी दुनिया घूमीं पर मन भारत में ही रमा।आग का दरिया ’  उनका सबसे चर्चित उपन्यास है। इसे आजादी के बाद लिखा जाने वाला सबसे बड़ा उपन्यास माना गया था। आग का दरिया एक ऐतिहासिक उपन्यास है। यह चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल से लेकर  1947  के बंटवारे तक भारत और पाकिस्तान की कहानी सुनाता है।उपन्यास के तीनों युग के पात्र गौतम और चंपा की एक ही इच्छा है काशी पंहुचना।  उनकी एक ही तमन्ना  है कि काशी उनके सपनों का  नगर बने। आनन्द  नगर बने।काश कुर्अतुल ऐन हैदर  या उनके उपन्यास  के    पात्र गौतम और चंपा  आज  जिंदा होते, वे आज काशी जाते  तो देखते प्रदेश और केंद्र सरकार  ने इस नगर को आज उनके सपनों का नगर बना दिया। आज 20 जनवरी कुर्अतुल ऐन हैदर (एनी आपा) का जन्मदिन है। उन्होंने उर्दू और अंग्रेजी में लिखा। किंतु इससे पहले उन्होंने वेद ,  भाष्य ,  भारतीय दर्शन को पढ़ा ही नही गुना भी। उसे ही उन्होंने अपनी रचनाओं में जगह दी। उनके विश्व प्रसिद्ध उपन्यास आग के दरिया में तो पूरा भारत का जीवन दर्शन है। इसमें उन्होंने भारत की तीन हजार साल की तहजीब ,