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Showing posts from January, 2024

नगीने का लकड़ी पर नक्काशी का कारोबार

    अशोक मधुप   नगीना आज लकड़ी पर नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है, किंतु   कभी   नगीना की प्रतिष्ठा इसकी लकड़ी की नक्काशी के बजाय इसके धातु उद्योगों पर थी ।   इसे अक्सर बंदूक बनाने की कला के साथ जोड़ा जाता था। माचिस की तीलियों को   नक्काशीदार लकड़ी के चार डिब्बों में रखकर   1867 की पेरिस प्रदर्शनी में भेजा गया था । प्रत्येक डब्बे   को 375 फ़्रैंक की कीमत पर बेचा गया था । यह स्थान लंबे समय से धामपुर और नजीबाबाद की तरह   हथियारों के बनाने के लिए प्रसिद्ध था ।*   आज   बिजनौर जिले की सबसे महत्वपूर्ण पुराने समय की औद्योगिक कला नगीने की लकड़ी पर        नक्काशी है । ऐसा कहा जाता है कि यह शिल्प मुल्तानी व्यापारियों द्वारा    नगीना   लाया गया। नगीना के कारीगर पीढ़ियों से आबनूस की गनस्टीक ,खाट ,पाये   और मसनद बनाते रहे हैं । ये   आमतौर पर उन्हें सतही पुष्प पैटर्न से सजाते हैं। बाद में इन कारीगरों ने   कैबिनेट बनाने में उच्च दक्षता हासिल कर ली । यह उद्योग ज्यादातर मुसलमान कलाकार और उद्योगपतियों     के हाथों में है और डिजाइन , ज्यामितीय या पुष्प , छेनी द्वारा नाजुक और स्पष्ट राहत में बनाए

कुर्अतुल ऐन हैदर का भारत

  कुर्अतुल ऐन हैदर का भारत  अशोक मधुप कुर्अतुल ऐन हैदर उर्फ  एनी आपा पूरी दुनिया घूमीं पर मन भारत में ही रमा।आग का दरिया ’  उनका सबसे चर्चित उपन्यास है। इसे आजादी के बाद लिखा जाने वाला सबसे बड़ा उपन्यास माना गया था। आग का दरिया एक ऐतिहासिक उपन्यास है। यह चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल से लेकर  1947  के बंटवारे तक भारत और पाकिस्तान की कहानी सुनाता है।उपन्यास के तीनों युग के पात्र गौतम और चंपा की एक ही इच्छा है काशी पंहुचना।  उनकी एक ही तमन्ना  है कि काशी उनके सपनों का  नगर बने। आनन्द  नगर बने।काश कुर्अतुल ऐन हैदर  या उनके उपन्यास  के    पात्र गौतम और चंपा  आज  जिंदा होते, वे आज काशी जाते  तो देखते प्रदेश और केंद्र सरकार  ने इस नगर को आज उनके सपनों का नगर बना दिया। आज 20 जनवरी कुर्अतुल ऐन हैदर (एनी आपा) का जन्मदिन है। उन्होंने उर्दू और अंग्रेजी में लिखा। किंतु इससे पहले उन्होंने वेद ,  भाष्य ,  भारतीय दर्शन को पढ़ा ही नही गुना भी। उसे ही उन्होंने अपनी रचनाओं में जगह दी। उनके विश्व प्रसिद्ध उपन्यास आग के दरिया में तो पूरा भारत का जीवन दर्शन है। इसमें उन्होंने भारत की तीन हजार साल की तहजीब , 

आस्तिक ऋषि का मठ

 center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh51IvJc7-f1ddTvqsOpl7pI3NdWpvKQaJ3EkLT-qkDOC3lf_FfguHzM9teE6UEY6Go0ujoYMwlDka5WwBxOdKQRm-4IiDKsMI5O1zGKUBjWxtv5yOIaFZ5sYrv9yyCcnwcDvPY9SBpWS0c/s1016/nilavala+astik+matha.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="881" data-original-width="1016" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh51IvJc7-f1ddTvqsOpl7pI3NdWpvKQaJ3EkLT-qkDOC3lf_FfguHzM9teE6UEY6Go0ujoYMwlDka5WwBxOdKQRm-4IiDKsMI5O1zGKUBjWxtv5yOIaFZ5sYrv9yyCcnwcDvPY9SBpWS0c/s320/nilavala+astik+matha.jpg" width="320" /></a></div><p></p><p>अशोक मधुप</p><p>बिजनौर।   बहुत कम लोग  जानते हैं कि  महाभारत काल में राजा  जन्मेजय का नाग यज्ञ  रूकवाने वाले आस्तिक  ऋषि का मठ  बिजनौर जनपद में है।  यह मठ बिजनौर से  लगभग चार पांच किलोमीटर दूर नीलावाला

राज गोपाल सिंह नही रहें

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 राज गोपाल सिंह नही रहें राजगोपाल सिंह नहीं रहे। राजगोपाल  बिजनौरी कवि, गीतकार के साथ साथ एक बहुत अच्छे मित्र थे। मेरे कॉलेज के सखा। बी.ए में अध्ययन के दौरान उनसे परिचय हुआ। कई साल साथ रहा। उनका गला बहुत अच्छा था। बहुत शानदार गीत  गाते , रतजगे करते कब गीत लिखने लगे पता नहीं चला।  दिल्ली  पुलिस में नौकरी मिलने के बाद फिर कभी संपर्क  नहीं हुआ। जीवन की व्यसतता में  बिजनौर आने पर वे कभी मिले नहीं। दिल्ली मैं   जाते बहुत बचता हूं। कभी इस सुदामा को जरूरत भी नहीं हुई। हां गाहे -बगाहे उनकी कवितांए  दोहे पढ़ने को मिलते रहे। टीवी पर एक बार लालकिले से उन्हें कविता पाठ करते देख बहुत सुखद लगा। प्रत्येक कवि का सपना होता है  वह लाल किले में होने वाले कवि सम्मेलन में कविता पाठ करे। यह सपना उनका कई बार पूर्ण  हुआ। आज सवेरे डा अजय जनमेजय के फोन से उनके निधन का पता चला। यह भी पता चला कि कई  माह से बीमार थे।  उनके परिवार जनों से उनकी खूब सेवा की। बिजनौर के भाटान स्कूल से  राजकीय इंटर कॉलेज  के जाने वाले रास्ते पर उनका घर है। यहीं  उनका एक जुलाई  १९४७ में जन्म हुआ। बिजनौर की गलियों में खेलकूद कर बड़े हुए राज

बिजनौर है जाहरवीर की ननसाल

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  बिजनौर है जाहरवीर की ननसाल हर साल लगता है रेहड़ ,गंज सहित कई जगह जाहरदीवान का मेला लाखों श्रद्धालु  जाहरवीर  म्हाढ़ी पर चढ़ाते हैं निशान , प्रसाद हिंदू व मुस्लिम दोनों संप्रदाय के लोग में माने जाते हैं जाहरवीर(जाहरपीर) अशोक मधुप बिजनौर]देश भर में गोगा जाहरवीर उर्फ जाहरपीर के करोड़ों भक्त हैं। सावन में हरियाली तीज से भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की नवमी तक देश भर में गोगा जाहरवीर उर्फ जाहरपीर इनकी म्हाढी पर श्रद्धालु आकर निशान चढ़ाते और पूजन अर्चन करते हैं। गोगा हिंदुओं में जाहरवीर है तो मुस्लिमों में जाहरपीर । दोनों संप्रदाय में इनकी बड़ी मान्यता है। यह बात कम ही लोग जानते हैं कि राजस्थान में जन्मे गोगा उर्फ जाहरवीर की ननसाल बिजनौर जनपद के रेहड़ गांव में है। इनकी मां बाछल जनपद में जहां जहां गई, वहां वहां आज मेले लगते हैं। जाहरवीर के नाना का नाम राजा कोरापाल सिंह था। गर्भावस्था में काफी समय गोगा जाहरवीर की मां बाछल अपने पिता के घर रेहड़ में रहीं। रेहड़ के राजा कुंवरपाल की बिटिया बाछल और कांछल का विवाह राजस्थान के चुरू जिले के ददरेजा गांव में राजा जेवर सिंह व उनके भाई राजकुमार नेबर सिंह से हु

मुगल काल से कभी कम नही हुई कालागढ़ की महत्ता

   शिवालिक पहाड़ि‌यों की तलहटी में बसे    विविध वनस्पतियों व जीव जन्तुओं से भरपूर कालागढ की स्थापना कब कैसे हुई!  इसका किवद्‌त्तियों के अलावा कहीं अन्य सटीक ऐतिहासिक प्रमाण मध्यकालीन ऐतिहासिक पुस्तकों में भी नहीं मिलता ।    यह तो निर्विवाद सत्य ही कि पहाड़ी तलहटियों से सटे मैदानी आबादी    के निकट के समतल स्थान पहाड़ी और देशी व्यापारियों के व्यापार स्थल होते थे। विज्ञान की उन्नति के बाद    आज भी ये अपना व्यापारिक स्वरूप बनाए हैं। जैसे गढ़वाल में कोटद्वर-नजीबाबाद ,  हरिद्वार ऋषिकेश ,  देहरादून ,  कुमायूँ क्षेत्र में काशीपुर ,  रामनगर, हल्द्वानी तथा कालाढुंगी।इसी तरह कालागढ़ भी कभी    कोटद्वार और रामनगर के मध्य बसे निवासियों का व्यापार स्थल था। इन व्यापारियों को    तत्कालीन भाषा में झोजा ,  भरिया कूंजड़े आदि नामों से जाना जाता था । उन‌की वर्त‌मान में बूढ़ी हो चुकी    पीढ़ी भी चटकारे लेकर उस समय के किस्से सुनाती है। व्यवसायी हरीशचंद्र ,  जितेंद्र जैन   और मंगू सिंह     कहते ही कि यहां शुक्रवार को    वर्तमान रामलीला मैदान व हेलीपेड स्थल में बाजार लगता था।    रेहड़ के   पत्रकार   अशोक कुमार शर