Posts

Showing posts from March, 2022

बिजनौर पर सिखों के हमले

  बिजनौर पर सिखों के हमले महाराजा रणजीत सिंह के समय में 1756 में पंजाब के गुलाब सिंह ने   सरदार करोड़ा सिंह चक्के से गहरी दोस्ती   कर अपनी ताकत बढ़ा ली। दोनों में पूरा एक्का   था।दोनों   ने अपनी पूरी फौज   के साथ हरिद्वार की ओर कूंच किया। हरिद्वार के बाद नजीबाबाद पर चढ़ाई की। नजीबाबाद का नजीब खां( नजीबुद्दौला) पर हमला किया। नवाब डोडा खान ने शुरुआत में कड़ा प्रतिरोध किया लेकिन कुछ ही समय बाद वह युद्ध के मैदान से भाग गए। हिम्मत से लड़ा पर हार गया। वह मैदान छोड़कर भाग गया।इसके बाद इन्होंने नजीबाबाद और बिजनौर जनपद को जमकर लूटा। सिख   इतिहास में देशराज सिंह पेज 273 पर कहतें हैं कि यह फिर मेरठ ,देवबंद , मीरापुर के मुसलमानों को मारते −काटते   सहारनपुर पंहुचे।लेखक ने सहारनपुर की   कार्रवार्ई के लिए सोधना शब्द का प्रयोग किया है। वहां से पंजाब पहुंचे। इन्होंने बिजनौर जनपद में नजीबाबाद के अलावा कहां −कहां कितनी मारकाट और लूट−पाट की,इसका जिक्र पुस्तक में नही हैं। जनपद पर दूसरा हमला किराडिया मिसाल के धारीवाल जाट सरदार बधेल सिंह ने किया। इन्होंने जलालाबाद पर हमला किया।उसके बाद खुरजा, चंदौसी

स्वामी श्रद्धानंद का बिजनौर से संबंध

  अशोक मधुप स्वामी श्रद्धानंद को नाम बिजनौर से जोड़ा   जाता   है।   इतिहासकार बिजनौर के प्रसिद्ध व्यक्तियों का जिक्र करते स्वामी श्रद्धानंद का नाम लेते है किंतु बिजनौर से उनका क्या वास्ता था, यह नहीं बता पाते।जबकि बिजनौर ने स्वामी श्रद्धानंद के सपने को पंख दिए।   स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती भारत के शिक्षाविद , स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा आर्यसमाज के संन्यासी थे ।इन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती की शिक्षाओं का प्रसार किया। गुरूकुल विशवविद्यालय ज्वालापुर उन्ही की देन है। स्वामी श्रद्धानन्द का जन्म 22   फ़रवरी सन् १८५६ को पंजाब प्रान्त के जालन्धर जिले के तलवान ग्राम में   एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता , लाला नानक चन्द , ईस्ट ईण्डिया कम्पनी द्वारा शासित यूनाइटेड प्रोविन्स (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में पुलिस अधिकारी थे। उनके बचपन का नाम वृहस्पति और मुंशीराम था। किन्तु मुन्शीराम सरल होने के कारण अधिक प्रचलित हुआ। पिता का ट्रान्सफर अलग-अलग स्थानों पर होने के कारण उनकी आरम्भिक शिक्षा अच्छी प्रकार नहीं हो सकी। एक बार आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती वैदिक-धर्म के प्

कुंवर सत्यवीर

  जीवन भर शिक्षा की अलख जगाने में लगे रहे कुंवर सत्यवीर   जीवन भर शिक्षा की अलख जगाने में लगे रहे कुंवर सत्यवीर जन्म दिन पर विशेष फोटो अशोक मधुप बिजनौर, पूरी उम्र शिक्षा की अलख जगाने वाले कुंवर सत्यवीर का आज जन्म दिन है। राजा ज्वाला प्रसाद के परिवार में 12 दिसबंर 1911 को इनका जन्म हुआ। इन्हें पिता ब्रिटीश काल के पहले भारतीय चीफ इंजीनियर बने। मूल रूप से मंडावर में कानूनगो परिवार से पहचाने जाने वाले राजा ज्वाला प्रसाद ने धर्म नगरी में अपना फार्म बनाया। उनके बेटे और छह भाई बहनों में पांचवे नंबर के सत्यवीर की शिक्षा इलाहाबाद में हुई। 1931 में कक्षा 11 उतीर्ण कर पिता के साथ इंग्लैंड गए । व‌हां लंदन विश्वविद्यालय से बीएससी आनर्स करने के बाद इंडियन नेशनल इतिहास और पोलिटिक्ल सांइस में डिप्लोम कर भारत आ गए। 1944 में पिता के निधन के बाद इन्होंने धर्मनगरी फार्म का कार्य संभाला। कर्ज में डूबे फार्म को उभारने में जी -जान से जुट गए। इस फार्म को जनपद के अग्रणी फार्म की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। 1943 में मुजफ्फरनगर के प्रतिष्ठित परिवार में विवाह हुआ। राजनीति उनके जीवन में शिक्षा के समय से ही शामिल

गंगा के ऊपर बसा है बिजनौर शहर

  गंगा के तट वाले इलाके में आज भी हैं ढ़लान वाले तट अशोक मधुप बिजनौर। आज गंगा दशहरा है। बिजनौर और आसपास के लोग गंगा स्नान के लिए गंगा बैराज जाते हैं। यहीं शव का अंतिम संस्कार करते हैं। आज से 25-30 साल पहले गंगा औेर विदुर कुटी गंगा स्नान के लिए जाते ‌थे। आज से लगभग 200 साल पहले बिजनौर शहर में गंगा बहती थी और बिजनौर वासी यहीं स्नान करते थे। अब गंगा की धारा दस किलोमीटर से ज्यादा पीछे जा चुकी है। बिजनौर के पुराने शहर में काजीपाड़ा, जाटान आदि बहुत गहराई पर बसे मोहल्ले हैं।जब‌कि शास्त्री चौक से घंटाघर पुरानी तहसील होने सदुपुरा जाने वाले रास्ते रास्त से पूरब की साइड में बसे मुहल्लों का तल सामान्य है। अचारजान में बाल कृष्ण खन्ना की कोठी से दो साइड को रास्ता गया है। इन रास्तों का ढाल 40 से 45 फिट तक है। पुराने लोग बताते रहे हैं कि कभी यहां गंगा बहती थी। ये ढाल गंगा के खोले(ढाल वाला तट) है। बताते हैं कि कभी गंगा की धार भरत विहार, नुमाईश ग्राउंड, काजीपाड़ा होते हुए बहती थी। ये ढाल गंगा के पुराने मार्ग को दर्शाता है। भगत सिंंह चौक से काजीपाड़ा, बालकृष्ण खन्ना की कोठी के दोनों साइड के ढाल, सरस्वती

वाह हरसुख राय लोहिया, बेटी की शादी का बना खाना अंग्रेज फौज के विद्रोही जवान को खिला दिया

अशोक मधुप किसी के यहां बेटी की शादी हो। बारात घर पर आई हुई हो, ऐसी हालत में क्या कोई बारात के लिए तैयार खाना किसी अनजान व्यक्तियों को खिला सकता है। कल्पना भी नहीं होती, किंतु एक भामाशाह ने ऐसा किया। 1857 की क्रांति के समय उनके शहर से अंग्रेज फोज के विद्रोही जवान की टुकड़ी जा रही था।उन्हें पता चला। घर से भागकर शहर के बाहर सड़क पर पंहुचे।इन जवानों को रोका । अपने साथ घर चल कर भोजन करने का आग्रह किया।उन सबको सम्मान के साथ अपनी हवेली लिवा लाए। बारातियों को समझा कर खाना खाने से रोका। कहा−यह आजादी के दीवाने हैं। पता नही कब से इन्हें अच्छा भोजन नही मिला।आप भोजन बाद में खा लेना। पहले इन्हें खा लेने दो। अब तो सब व्यवस्थाएं सरलता से हो जाती हैं। एक बात 1857 की उस समय की है ,जब शादी व्याह के लिए एक −एक छोटा मोटा सामान सब परिवार को एकत्र करना पड़ता था ।ये घटना है उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद के धामपुर नगर की। 1857 की क्रांति के समय उत्तर प्रदेश के धामपुर (बिजनौर)के सेठ हरसुख राय लोहिया हुए हैं।इस जंग ए आजादी के दौरान इनकी बेटी की शादी थी।बारात आई हुई थी।इनकी हवेली में बारात के खाने का प्रबंध

बिजनौर जिले का दो सो साल का सफर

Image
बिजनौर में बिजनौर जिले का 200 साल का सफर पूरा हो गया। सफर के दौरान यहां के निवासियों को कई मोड़ से गुजरना पड़ा। वर्ष 1817 में  बिजनौर जनपद की स्थापना हुई। सर्वप्रथम इसका मुख्यालय नगीना बनाया गया। फिर कमीशन ने मुख्यालय के लिए भूमि तलाश शुरू की। फिर झालू में मुख्यालय स्थापना की कोशिश की गई, लेकिन यह रणनीति परवान नहीं चढ़ सकी। झालू में अंग्रेज कमिश्नर की पत्नी पर मधुमक्खियों ने हमला बोल दिया था। उनकी हमले में मौत हो गई थी। झालू में आज भी उनकी की समाधि बनी है। अंतत: मुख्यालय बिजनौर ही बन गया।   डिस्ट्रिक्ट गजेटियर के मुताबिक इससे पहले बिजनौर मुरादाबाद का हिस्सा था। 1817 में यह मुरादाबाद से अलग हुआ। नाम मिला नार्थ प्रोविस ऑफ  मुरादाबाद।  मुख्यालय बना नगीना। इसके पहले कलक्टर बने मिस्टर  बोसाकवेट। उन्होंने अपना कार्यभार  एनजे हैलहेड को सौंपा। हैलहेड ने  नगीना से हटाकर बिजनौर को मुख्यालय  बनाया। जिला मुख्यालय नगीना से बिजनौर लाने का मुख्य कारण नगीना समय के अनुकूल नहीं था। यह भी बताया गया कि बिजनौर को इसलिए चुना गया क्योंकि यह मेरठ छावनी के नजदीक था। जरूरत पड़ने पर कभी भी सेना को बिजनौर बुलाया

इनाम में मिली 15 हजार एकड़ जमीन के बदले मांग ली छोटे भाई की जान की माफ

Image
इनाम   में   मिली   15   हजार   एकड़   जमीन   के   बदले   मांग   ली   छोटे   भाई   की   जान   की   माफ ी, जब्त करा दी थी पुश्तैनी  जमीन   भी   अशोक मधुप आज  भाई −  भाई   की   जान   की  भूखा  है. थोड़ी सी रकम और  जमीन   के  लिए अपने सगे  भाई  का कत्ल करते नही चूक रहा. जरासे लालच  में  सगे  भाई   की   जान  लेने पर तुला है, जबकि बिजनौर जनपद  में   छोटे   भाई  को फांसी से बचाने  के  लिए नहटौर  के  जमींदार बंदे अ ली  ने     अपनी धेवती  की   जान   की  झूठी कसम ही नहीं खाई ,  अपितु उपहार  में  मिल रही    15   हजार    एकड़   जमीन  सरकार से नहीं  ली . उस के   बदले   भाई   की   जान की  बख्शीश  मांग   ली .  भाई   की   जान  तो  माफ  हो गई किंतु उन की  पुश्तैनी   जमीन  भी जब्त हो गई.   विख्यात    उर्दू लेखिका कुर्रतुल   ऐन   हैदर  के  दादा बंदे अ ली  रिटायर्ड तहसीलदार और नहटौर (बिजनौर) उत्तर प्रदेश  के  जमींदार थे. 1857  के  गदर  के  समय वे नहटौर  में  रहकर अपनी जमींदारी का काम संभाल रहे थे. छोटा  भाई  अहमद अ ली  अंग्रेज फौज  में  मेरठ  में  तैनात था. 1857  के  विद्रोह  में  अहमद अ ली      बागी हो