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Showing posts from January, 2022

कुरतुल एन हैदर का नहटौर

  जन्मदिन  पर विशेष  कुरतुल एन हैदर का नहटौर सूरदास का पद उधो मोही ब्रज बिसरे नाही ,उर्दू की प्रसिद्ध लेखिका कुर्तुलेन हैदर पर बिल्कुल सही बैठता है। ऐनी  आपा के नाम से प्रसिद्ध कुर्तुल एन हैदर पूरी दुनिया घूमी। लंदन रहीं।देश के बंटवारे के बाद  पाकिस्तान चली गईं।वहां भी रही पर उनका मन हिंदुस्तान और उसके बिजनौर जिले के कस्बे नहटौर में भटकता रहा। मुंबई रही या नोयड़ा उनके दिल से नहटौर एक पल  के लिए भी नहीं गया।उन्होंने अपने नाविल कारे जहां दराज है ,में अपने परिवार का एक हजार साल का इतिहास संजोया है। तीन भाग में छपे इस विशाल उपन्यास में वह बताती हैं कि कैसे उनके पूर्वज एक हजार साल पहले नहटौर आकर बसे।वह इसमें अपने घर उसके आगे की झील, मुहल्ले का जिक्र करती है।नहटौर के बागात के किस्से कहतीं हैं।   वह कहती हैं कि 1962 की बरसात में मुहल्ला सादात सैदरी नहटौर के वीरान खंडहर, पुश्तैनी मकान  बारिश की झड़ी में धड़ाधड़ गिरते जा रहे थे। दो सौ बरस पुराने बड़े दरबार नहटौर का  दूसरा फाटक गिरा और झील के किनारे खड़ी  बूढ़ी पिलखन बारिश और हवाओं की भेंट चढ़ गई।  कुरतुलेन कहती हैं कि नहटौर वाले नहटौर को छोटा द

कुर्अतुल ऐन हैदर दुनिया घूमीं पर मन भारत में ही रमा

आज के प्रभासाक्षी में कुर्अतुल ऐन हैदर पर मेरा लेख |शख्सियत | कुर्अतुल ऐन हैदर दुनिया घूमीं पर मन भारत में ही रमा अशोक मधुप जनवरी 20, 2022 10:46 कुर्अतुल ऐन हैदर दुनिया घूमीं पर मन भारत में ही रमा ---- 'आग का दरिया’ उनका सबसे चर्चित उपन्यास है। इसे आजादी के बाद लिखा जाने वाला सबसे बड़ा उपन्यास माना गया था। आग का दरिया एक ऐतिहासिक उपन्यास है। यह चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल से लेकर 1947 के बंटवारे तक भारत और पाकिस्तान की कहानी सुनाता है। ;- आज कुर्अतुल ऐन हैदर (एनी आपा) का जन्मदिन है। उन्होंने उर्दू और अंग्रेजी में लिखा। किंतु इससे पहले उन्होंने वेद, भाष्य, भारतीय दर्शन को पढ़ा ही नही गुना भी। उसे ही उन्होंने अपनी रचनाओं में जगह दी। उनके विश्व प्रसिद्ध उपन्यास आग के दरिया में तो पूरा भारत का जीवन दर्शन है। इसमें उन्होंने भारत की तीन हजार साल की तहजीब, रहन−सहन, कला, संस्कृति और दर्शन को उतारा। आग का दरिया’ उनका सबसे चर्चित उपन्यास है। इसे आजादी के बाद लिखा जाने वाला सबसे बड़ा उपन्यास माना गया था। आग का दरिया एक ऐतिहासिक उपन्यास है। यह चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल से लेकर 1947 के

मेनका ताल अमर उजाला नौ अक्तूबर 2019

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jhalu

  JHALU: A small town and its communities in Uttar Pradesh, my town, JHALU; Here is the description of a typical small town in Uttar Pradesh and the various communities lived with peace and harmony during 1940s and 1950s. Everyone knew every other person or family in the town. People from all the communities used to work together, celebrate social events together. JHALU in District Bijnor, Uttar Pradesh is/was a small town during 1940s with a population of about 8,000 or so.It was almost kind of a big village. Infrastructure was very poor with no cement roads, most of the roads were either brick roads or mud roads; no drainage system; a drain for the used over water used to be in the middle of the road; no sanitation facilities; no electricity; no roads or rail roads to connect with other towns.Means of transport was only the bullock carts. Some times, we used to walk from Bijnor to Jhalu in the absence of any kind of transport.No railway Station, no Bus Station. There used to be a coa

बिजनौर में ताजमहल सरीखी मोहब्बत की निशानियां

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  बिजनौर में ताजमहल सरीखी मोहब्बत की निशानियां अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनकी पत्नी मेलानिया ने आगरा में मोहब्बत की निशानी ताजमहल का दीदार किया। मोहब्बत की ऐसी निशानियां बिजनौर जिले में भी हैं, जो आज भी आकर्षण का केंद्र हैं। इनमें राजा का ताजपुर स्थित सेक्रेड हार्ट चर्च और नजीबाबाद में बना चार मीनार मकबरा है। सेक्रेड हार्ट चर्च को ताजपुर के राजा और उनके भाई ने अपनी ईसाई पत्नियों के लिए बनवाया था तो, नजीबाबाद में शौहर जहांगीर की याद में उनकी बेगम ने चार मीनार मकबरा बनवाया था। संवाद न्यूज एजेंसी बिजनौर/नजीबाबाद। कस्बा राजा का ताजपुर से लगभग दो किमी उत्तर की और कड़ूला नदी पर स्थित सेक्रेड हार्ट चर्च 12 एकड़ भूमि में आम के बागों के बीच बना है। अपनी खूबसूरती एवं बनावट के लिए एशिया में विशिष्ट पहचान रखने वाले इस चर्च को ताजपुर के राजा श्याम सिंह रिख और उनके छोटे भाई शिवनाथ रिख ने अपनी ईसाई पत्नी मारग्रेट मेरी एवं विलियम मेरी के लिए वर्ष 1913 में बनवाया था। सेक्रेड हार्ट चर्च की खूबसूरत ऊंची वेदी का निर्माण फ्लारेंस निवासी विश्व प्रसिद्ध मूर्तिकार जोजप्पे कतानी चिंती ने किया था।

बन रहे गांगन के पुल की ईंट चोरी हो गईं

 ब न रहे गांगन के पुल की ईंट चोरी हो गईं 1857 के गदर के समय नहटौर के पास गांगन नदी पर पुल बन रहा था। नहटौर की रहने वाली  जानी मानी लेखिका  कुर्तुल एन हैदर अपनी पुस्तक कारे जहां दराज है,में इस बारे में विस्तार से लिखती है। उन्होंने पुस्तक में मसनवे माडे नामा नामक चैप्टर  में कहा है कि मुहल्ला सादात हैदरी  नहटौर में दरबारे उज्जाम का एक महल खड़ा  है।  1857 में इसमें 12 टोपी वालों ने आजाद सरकार कायम की थी। मीरा इमतयाज अली  अध्यक्ष  , काजी शब्बू  आर्थिक मामलों के  मंत्री ( वजीरे मालिकात)   चौधाी अनूप सिंह वजीरे खजाना, और इनायत हुसैन रक्षा मंत्री ( वजीरे फिदा) थे।  इनायत हुसैन पेशावरी पठान थे। इनकी मूंछ डरावनी थीं।यह बारह टोपी  12 माह कार्यरत रहीं।इसने इस अवधि में गांव से मालगुजारी वसूली। इस कोठी के मैदान में अदालत लगती। बाहर से केथ के पेड़ तक एक मोटा रस्सा लटका दिया था।बारह टोपी वाले जिसे चाहते  उसे फिंरगी का जासूस बताकर फांसी दे देते।इस बारह टोपी सरकार  का बड़ा आंतक था। उधर  शोरकोट का माड़े खान आ गया।इससे यहां हिंदू मुस्लिम फसाद हुए। 22 अगस्त 1957 को मिस्टर जार्ज पांमर ज्वान्ट मजिस्ट्रेट 

महाभारत काल तक स्वर्ग या पहाड़ पर जाने का रास्ता बिजनौर से था

महाभारत काल तक स्वर्ग या पहाड़ पर जाने का रास्ता बिजनौर से होकर ही बताया गया है। राजा दुष्यंत देवताओं के बुलावे पर युद्ध करके इसी रास्ते से जाते  औ र लौटते हैं। सुहाहेड़ी के पास कश्यप ऋषि का आश्रम बताया जाता है। सुहाहेड़ी के निवासी सेठ जयनरायण     सिंह बताते हैं कि पूर्वज इस आश्रम के बारे में बतातें आए हैं। यहां कुछ भी शेष नहीं। संभवतः यहा से बहने वाली मालन नदी की बाढ़ में किसी समय सब बह गया।इस आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत को शेर    के दांत गिनता भरत    मिलता है। यह ही उनका और शकुतंला का पुत्र है। इसी के नाम पर बाद में    देश का नाम भारतवर्ष   पड़ा । द्रोपदी का मंदिर बरमपुर में    है। कहतें हैं कि र्स्वगा्रोहण के लिए पांडवों के जाते समय द्रोपदी थक कर यहीं गिरी थी। यहीं उसकी मौत हुई थी ।   महाभारत काल में पहाड़ पर जाने का स्वर्ग जाने    जाने का रास्ता बिजनौर से होकर था ।हस्तिनापुर नरेश और वहां के व्यक्ति बिजनौर यहीं से होकर पर्वतों पर जाते थे । दूसरी साइड में गंगा का बहुत बड़ा बहाव था और उसे बार-बार पार करना सरल नहीं था    हस्तिनापुर और बिजनौर के बीच में उस समय आवाजाही    सरल थी

बिजनौर जनपद

बिजनौर जनपद प्राकृतिक रूप से बहुत सुरक्षित जगह है। दो ओर गंगा इसकी सीमा बनाती है।उत्तर में  हिमालय पहाड़ इसे सुरक्षित करता है। कालागढ़− अफजलगढ़ होकर स्योहारा से मुरादाबाद पंहुचने वाली राम गंगा  मुरादाबाद से  बिजनौर को सुरक्षित करती है। चारों ओर से सुरक्षित  बिजनौर साधु − संत की तपस्या, चिंतन और स्वाध्याय के लिए बहुत सुरक्षित स्थान था। गंगा के जल को पार कर यहां  आना सरल नहीं था।  उधर हिमालय बड़ा सुरक्षा प्रहरी था। इन सब के बीच जीवन यापन के लिए भरपूर वन संपदा थी । वन्य प्राणी थे। उस सयम मांस आहार में शामिल था। इसलिए वह भी समय− समय पर यहां रहने वाले वन्य प्राणी यहां के वनचर   और साधु संत की उदरपूर्ति ही करते। इधर− उधर हुए धार्मिक  और राजनैतिक हमले के शिकार सुरक्षा के लिए यहां आते गए और बसते गए।   इसी कारण  यहां के  आज के वासी यहां के मूल निवासी नहीं हैं। किसी से पूछिएगा तो वह यहीं बताएगा कि उसके पूर्वज राजस्थान से आए थे।  पंजाब से आए थे। लेखक का परिवार खुद मेरठ से झालू में आया था। हमारे  बुजुर्ग बताते थे कि हमारे परिवार में बच्चा नहीं होता था। किसी ने कहा −जगह का दोष है। स्थान छोड़ दो।  स