बिजनौर जनपद

बिजनौर जनपद प्राकृतिक रूप से बहुत सुरक्षित जगह है। दो ओर गंगा इसकी सीमा बनाती है।उत्तर में  हिमालय पहाड़ इसे सुरक्षित करता है। कालागढ़− अफजलगढ़ होकर स्योहारा से मुरादाबाद पंहुचने वाली राम गंगा  मुरादाबाद से  बिजनौर को सुरक्षित करती है।

चारों ओर से सुरक्षित  बिजनौर साधु − संत की तपस्या, चिंतन और स्वाध्याय के लिए बहुत सुरक्षित स्थान था। गंगा के जल को पार कर यहां  आना सरल नहीं था।  उधर हिमालय बड़ा सुरक्षा प्रहरी था। इन सब के बीच जीवन यापन के लिए भरपूर वन संपदा थी । वन्य प्राणी थे। उस सयम मांस आहार में शामिल था। इसलिए वह भी समय− समय पर यहां रहने वाले वन्य प्राणी यहां के वनचर   और साधु संत की उदरपूर्ति ही करते।

इधर− उधर हुए धार्मिक  और राजनैतिक हमले के शिकार सुरक्षा के लिए यहां आते गए और बसते गए।   इसी कारण  यहां के  आज के वासी यहां के मूल निवासी नहीं हैं। किसी से पूछिएगा तो वह यहीं बताएगा कि उसके पूर्वज राजस्थान से आए थे।  पंजाब से आए थे।लेखक का परिवार खुद मेरठ से झालू में आया था। हमारे  बुजुर्ग बताते थे कि हमारे परिवार में बच्चा नहीं होता था। किसी ने कहा −जगह का दोष है। स्थान छोड़ दो।  साे वह झालू आ गए। मेरठ से आए थे, इसलिए हमारा परिवार मेरठी कहलाया। हमारे कुटंब वाले कुछ सदस्य  मेरठ के मीरापुर कस्बे में  रहतें हैं।     



 िबजनौर जनपद की  भाषा 

बिजनौर के रहने वाले यहां के मूल निवासी नही हैं, इसलिए यहां की कोई न आनी भाषा है, न कला और न संस्कृति। सब मिला − जुला। सब खिचड़ी।

बिजनौर जनपद की भाषा उर्दू मिश्रित है।इसका कारण  शहरों की आधे से ज्यादा मुस्लिम आबादी होना है।अब गंगा पर पुल बन जाने से मेरठ− मुजफ्फरनगर आना− जाना सरल हो गया। इसलिए पास के इन जिलों की भाषा का कोई प्रभाव नहीं पड़ा।देश की जानी मानी लेखिका और पत्रकार कुर्तुलेन हैदर अपनी पुस्तक कारे जहां दराज है में कहती हैं कि बिजनौर उत्तर प्रदेश का का एक मात्र एसा जिला है जहां का 90 प्रतिशत जन मानस वह  उर्दू बोलते आए हैं।इसे केवल खाड़ी बोली नही कहा जा सकता।

 बिजनौर की बोली पर शोध करने वाले डा ओमदत्त आर्य कहते हैं कि बिजनौर की भाषा हिंदुस्तानी है।इसमें सभी भाषाओं के मिले− जुले शब्द हैं।

 

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