हरिद्वार कुंभ में जब तैमूर लंग ने किया था कत्ले आम
हरिद्वार कुंभ में जब तैमूर लंग ने किया था
कत्ले आम
अशोक मधुप
वरिष्ठ पत्रकार
आज से लगभग 627 साल पहले तैमूर लंग ने हरिद्वार
कुंभ में बुरी तरह कत्ले आम किया था। तैमूर ने कुंभ में आए 4282 श्रद्धालुओं को मार डाला था।
यह कत्ले आम देख नागा सन्यासी उसके
मुकाबले के लिए आएं।इन नागा संयासियों ने तैमूर लंग के 3500 खूंखार लडाके मार
डाले। उधर जाटों की खाप पचांयत की सेना भी मेरठ से तैमूर का पीछाकर रही थी। उसने
हरिद्वार के पास पथरी में तैमूर का मुकाबला किया
और भारी तबाही मचाई ।अपने खेमें में भारी तबाही मचता देख यहां से तैमूर लंग
दुम दबाकर भागा और 17 मार्च को कांगड़ा पंहुच गया।
तैमूर लंग ने मार्च सन् 1398
ई में भारत पर 92 हजार घुड़सवारों की
सेना से आक्रमण किया । दिल्ली में लूटमार और
कत्ले आम कर वह मेरठ पंहुचा। मेरठ के किलेदार इलियास को हराकर
तैमूर ने मेरठ में भी तकरीबन 30 हज़ार हिंदुओं को मारा।यह सब करने में उसे महज़ तीन महीने
लगे। इस बीच वह दिल्ली में केवल 15 दिन और मेरठ में एक सप्ताह रहा।तैमूर का मकसद केवल भारत को लूटना
था, इसलिए
वह वापस अपने देश लौट गया।
दिसंबर 1398 में तैमूर दिल्ली के पास पहुंचा। जंग जीतकर 18
दिसंबर को उसने दिल्ली में प्रवेश किया। सेना
का दिल्लीवासियों से विवाद हो गया। उसके बाद तैमूर ने कत्ले आम के आदेश दिए। पांच दिन तक कत्ले आम
हुआ। 15 दिन रहकर तैमूर यहां से चला गया किंतु कई महीने तक जगह −जगह लगे लाशों के
ढेर सड़ते रहे। नौ जनवरी को उसने
मेरठ पर हमला किया।दिल्ली और मेरठ के बीच में उस पर भारतीय विरोध करने वालों के लगातार हमले हो रहे थे। पुरूष
दिन में हमले करते तो महिलाओं की सेना रात में तैमूर
और उसकी सेना जब तक हमलावरों का जवाब
देने को होती, हमलावर जंगल में जाकर छिप
जाते।इन हमलों के डर से तैमूर और उसकी सेना ने मुजफ्फरनगर के सामने तिमरपुर के
पास गंगा
पार की और बिजनौर में प्रवेश कर गया।
यहां भी वह रूका नही । गंगा के
किनारे −किनारे आगे बढ़ता चला गया। जगह
−जगह उसका विद्रोही सेना से मुकाबला हो रहा । लगता है कि इसी कारण वह यहां
रूककर लूटमार करने की हालत में नही था।
बिजनौर जिला गजेटियर कहता है कि तैमूर बिजनौर
जनपद में मात्र तीन दिन रहा।इस बीच दो बाद उसका स्थानीय सेना से मुकाबला हुआ। चंडी की पहाड़ियों से पांच मील नीचे उसने फिर गंगा पार की और
हरिद्वार में प्रवेश कर गया। यहां
भी उसका स्थानीय सेना से मुकाबला हुआ,
हालाकि तैमूर यहां भी विजयी हुआ किंतु
उसकी सेना को नुकसान बहुत
हुआ।
बिजनौर
में मात्र तीन दिन रहने के कारण वह बिजनौर पर कोई ज्यादा प्रभाव नही डाल
सका।दिल्ली से मुजफ्फरनगर के बीच लगातार
हो रहे हमलों और सेना के भारी नुकसान से तैमूर बहुत ज्यादा परेशान था। रास्ते
में उसकी सेना लूटमार नही कर सकी।सेना को रास्ते के गांव खाली
मिले। कुओं के पानी
में जहर मिला था।
तैमूर 10 हजार
घुड़सवारों के साथ सात जनवरी, 1399 को
मेरठ पर चढ़ाई कर दी। दोपहर को ही किले की घेरेबंदी कर ली और लड़ाके बारुद बिछाने
लगे। इतनी बड़ी फौज देख किले में खलबली मच गई। अफरा-तफरी का लाभ उठाकर तैमूर की फौज
किले में प्रवेश कर गई। यहां ¨हिंदू-मुस्लिम
दोनों योद्धाओं ने मिलकर तैमूर से लोहा
लिया, लेकिन कुछ घंटों की जंग के बाद तैमूर
ने वही किया, जो अब तक करता आया था। इलियास अफगान
बेड़ियों में जकड़कर तैमूर के पांव में डाल दिए गए। तैमूर ने इसे पिंजरे में
डाल दिया1 सफी को उसने जिंदा जलाने का हुक्म दे दिया। तैमूर
यहां एक सप्ताह रूका।कत्लेआम मचाने के बाद
तैमूर मेरठ के बच्चों और महिलाओं को दास बनाकर अपने साथ मध्य एशिया ले गया, जहां वह दासों को इंसानों की मंडी में
बेच देता था!
पीर
मुहम्मद के नेतृत्व में सेना ने मुजफ्फरनगर
जिले के फिरोजपुर में गंगा को पार किया, और बिजनौर
के पड़ौस में उतरा; जबकि
तैमूर ने स्वयं नदी
की धारा के ऊपर अपनी यात्रा जारी रखी।
उसने एक
बड़ी सेना को हराया जो नावों में नदी से नीचे आ रही थी,
और फिर बालावाली
घाट से ज्यादा दूर तुगलकपुर में कब्जा
कर लिया । हालाँकि
उसका सामना
मुबारक खान के नेतृत्व वाली सेना से हुआ।
इसकी संख्या
काफी हद तक मुगलों से अधिक थी; लेकिन
शाहरुख और
5,000
घुड़सवारों, जो
नीचे से पार कर आए थे, के
सौभाग्यशाली आगमन ने तैमूर को अपना
हमला करने में सक्षम बनाया। इसके
परिणाम स्वरूप विपक्षी रक्षक
घबरा गए, उन्होंने
अपना शिविर छोड़ दिया और अपनी
ताकत का एक बड़ा हिस्सा खो दिया। उसी
दिन, तैमूर केवल
500
घुड़सवारों के साथ उत्तर की ओर चंडी पहाड़ियों की
ओर बढ़ा, और
वहाँ
विरोधी मलिक शेख के नेतृत्व में एक और व्यक्ति की मौत हो गई,
वह भी हार
गया, उसके
लोग घने जंगल में बिखर गए। उस
दिन तैमूर ने एक तिहाई सफलता हासिल की, यह
सुनकर कि दुश्मन के एक और समूह ने पहाड़ियों
के नीचे एक स्थिति बना ली है। इन्हें
भी उन्होंने मुख्य रूप से अपने
बेटे पीर मुहम्मद के भाग्यशाली आगमन के कारण उखाड़ फेंका।इसके बाद तैमूर अपनी दूसरी
लड़ाई के स्थल पर चला गया,जहाँ उसने रात के लिए विश्राम
किया; लेकिन
अगले दिन उन्होंने चंडी
पहाड़ियों में अपने विरोधियों को फिर से हराते
हुए, हरिद्वार
की ओर अपना आगे बढ़ना जारी रखा।इस कार्रवाई से वह संतुष्ट प्रतीत होता है,
क्योंकि उसी दिन उसने हरिद्वार से पांच मील नीचे
गंगा को पार किया और पूर्व की ओर अपने कदम बढ़ा दिए। हो
सकता है कि उन्हें यह जंगल युद्ध अरुचिकर लगा हो।
इतने दुर्गम इलाके में कोई लाभ नहीं हो सकता था,
उनके विरोधियों की तेज़ उड़ान ने पथहीन जंगल में
पीछा करना मुश्किल कर दिया था, और
यह संभावना नहीं है कि मुगलों को जो नुकसान हुआ था वह समाप्त हो गया था।लालढांग के
ऊपर एक घाटी उस स्थान को चिह्नित करती है जहां तैमूर के कई अनुयायियों को दफनाया
गया था, जिला गजेटियर कहता है कि हालांकि
यह शायद ही संभव है कि इतने कम समय में कब्रें बनाई जा सकती थीं। एक
विचार यह भी है और सही लगता है कि ये कब्रें रोहिल्लाओं की हैं जो चार सदियों बाद उस
अस्वास्थ्यकर स्थान के पास डेरा डाले हुए थे।जहां तक इसजिले का संबंध है,
सभी घटनाओं में तैमूर का आक्रमण महज एक आक्रमण था। मुगल
सेनाएं केवल तीन दिनों के लिए बिजनौर क्षेत्र में थीं,
निस्संदेह जीवन की स्थिति इतनी बड़ी थी,
उनकी उपस्थिति कोई स्थायी प्रभाव नहीं डाल सकती
थी।
तैमूर के
सार्वजनिक कत्लेआम, लूट
खसोट और सर्वनाशी अत्याचारों की सूचना मिलने पर संवत् 1455
(सन् 1398
ई०) कार्तिक बदी उ5
को देवपाल राजा की
अध्यक्षता में हरियाणा सर्वखाप पंचायत का अधिवेशन जिला मेरठ के गाँव टीकरी,
निरपड़ा,
दोघट और दाहा के मध्य
जंगलों में हुआ। देवपाल राजा का जन्म निरपड़ा गांव जिला मेरठ में एक जाट घराने में
हुआ था।सर्वसम्मति से निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किये गये
– (1) सब
गांवों को खाली कर दो। (2)
बूढे पुरुष-स्त्रियों तथा बालकों को सुरक्षित स्थान
पर रखो। (3)
प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति सर्वखाप पंचायत की सेना
में भर्ती हो जाये। (4)
युवतियाँ भी पुरुषों की भांति शस्त्र उठायें। (5) दिल्ली
से हरिद्वार की ओर बढ़ती हुई तैमूर की सेना का छापामार युद्ध शैली से मुकाबला किया
जाए तथा उनके पानी में विष मिला दो। (6) 500 घुड़सवार
युवक तैमूर की सेना की गतिविधियों को देखें और पता लगाकर पंचायती सेना को सूचना
देते रहें।
पंचायती
झण्डे के नीचे 80,000
मल्ल योद्धा सैनिक और 40,000 युवा
महिलायें शस्त्र लेकर एकत्र हो गए। इन वीरांगनाओं ने युद्ध के अतिरिक्त खाद्य
सामग्री का प्रबन्ध भी सम्भाला। दिल्ली के सौ-सौ कोस चारों ओर के क्षेत्र के वीर
योद्धा देश रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने रणभूमि में आ गये। सारे
क्षेत्र में युवा तथा युवतियां सशस्त्र हो गए। इस सेना को एकत्र करने में 95 वर्षीय
धर्मपालदेव जाट योद्धा ने बड़ा सहयोग दिया था। उसने घोड़े पर चढ़कर दिन रात
दूर-दूर तक जाकर नर-नारियों को उत्साहित करके इस सेना को एकत्र किया। उसने तथा
उसके भाई करणपाल ने इस सेना के लिए अन्न, धन
तथा वस्त्र आदि का प्रबन्ध किया।
तैमूर लंग की सबसे नीचता पूर्ण हरकत यह थी कि वह
जब 1398 में भारत में हमला किया ,उस समय हरिद्वार को मेला चल रहा था।उसे पता चला कि
एक जगह लाखें हिंदू एकत्र हैं।उसने कुंभ मेले पर अपनी सेनाको हमला करने के आदेश
दिए।कुंभ में आए हिंदू राजा समझे कि तैमूर
श्रद्धावश कुंभ मेले को देखने आ रहा है।हरिद्वार के वरिष्ठ पत्रकार कौशल शिखोला के
अनुसार तैमूर ने लगभग 4232 हिंदुओं का यहां क्तल किया।इस कत्ले आम को होता देख नागा
सन्यासी तैमूर के मुकाबले के लिए आए।उन्होंने एक ही झटके में तैमूर के 3500 खूंखार
अफगान लड़ाके मार डाले।हरिद्वार के करीब पथरीगढ़
(ज्वालापुर)में युद्ध के दौरान जाटों की सेनाओं ने तैमूर की सेना के दांत पूरी तरह
खट्टे कर दिए। उन्हें समझ में आ गया कि इस फौज से पार पाना शायद उनके लिए संभव नही
होगा। लड़ाई के दौरान ही जाट सेना के एक सेनापति हरबीर सिंह गुलिया ने अपना भाला
तानकर तैमूर के सीने पर ऐसा मारा कि वह घोड़े से नीचे गिर पड़ा। उसे इतना भयंकर
घाव हुआ कि वापस लौटना पड़ा।
अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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