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Showing posts from September, 2023

कार सेवा के लिए वह जनून अदभुत, अकल्पनीय था

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अशोक मधुप वरिष्ठ  पत्रकार उत्तर प्रदेश में  मुलायम सिंह यादव की सरकार। भाजपा  और  विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में राम मंदिर के लिए   कार सेवा  करने का  आह्वान किया। तारीख 30  अक्तूबर 1990 निर्धारित की गई।मुलायम सिंह ने कहना  शुरू कर दिया कि कार सेवा की बात क्या कोई अयोध्या की बाबरी मश्जिद की और मुंह करने देख भी  नही सकेगा।अयोध्या में परिंदा भी  पर नही मार सकेगा।  उसके ये भाषण  हिंदू समाज के लिए चेतावनी थे।  सनातन धर्म को खुला चैंलेंज था।ऐसे में हिंदुओं में अपनी ताकत, क्षमता, शौर्य और साहस दिखाने की ललक प्रज्जवित हो गई।सिर पर भगवा लपेट कर राम  पर सर्वस्व लुटाने के लिए धर्मरक्षक घरों से अयोध्या के लिए निकल  पड़े। किसी ने ये नही सोचा  की क्या  होगा।कोई लाठी−डंडा , तलवार भाला, बंदूक कुछ नही।सिर्फ आत्मशक्ति के बूते एक जोड़ी कपड़े  ,हलका −फुल्का  रास्ते में खाने− पीने का  सामान लेकर दीवानों की टोलियां  पूर देश  से अयोध्या के लिए  निकल पड़ीं। दरअस्ल  हम भारतीय सब कुछ बर्दांश्त कर सकतें हैं। धर्म और सम्मान का अपमान नही। देश लगभग  700 साल मुस्लिम  और दो सौ साल अंग्रेजों का  गुलाम रहा।इस दौरान

दादा साहब फाल्के पुरस्कार पाने वाली वहीदा रहमान कभी बिजनौर की दुल्हन बनने वाली थी

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दादा साहब फाल्के पुरस्कार पाने वाली वहीदा रहमान कभी बिजनौर की दुल्हन बनने वाली थी अशोक मधुप अभिनेत्री वहीदा रहमान को प्रतिष्ठित दादा साहब फालके पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। ये घोषणा करते हुए केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने एक्स पर लिखा कि उन्हें यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि फिल्म अभिनेत्री वहीदारहमान जी को भारतीय सिनेमा में उत्कृष्ट योगदान के लिए इस साल प्रसिद्ध दादासाहब फाल्के लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार दिया जा रहा है। आज के बिजनौर को पता भी नही होगा कि इन वहीदा रहमान का बिजनौर से गहरा नाता रहा है।ये बिजनौर की दुल्हन बनने वाली थीं। मंगनी हो गई थी किंतु दुल्हे के पहले ही शादीशुदा होने के कारण यह शादी नही हो सकी। इनके पति ने धामपुर में टैल्कम पाउडर बनाने की एक फैक्ट्री भी लगाई थी। वहीदा रहमान काफी समय तक लगातार धामपुर आती −जाती रही ।धामपुर प्रवास के दौरान ये फैक्ट्री में ही अपने लिए भवन में रहती थीं। उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद के नजीबाबाद के एक रईस हुए हैं अहसान साहब। इनके पिता हाफिज अहमद हुसैन का 1960 के आसपास नजीबाबाद में लकड़ी का बड़ा कारोबार था। हाफिज अह

गजराज सिंह गज

गजराज सिंह गज फीना निवासी गजराज सिंह गज ग्रामीण पृष्ठ भूमि से रहे । वे जनपद के एक मात्र कवि रहे जिन्होंने प्रकृति,ग्राम, ग्रामवासी और खेती पर लिखा। गजराज सिंह 'गज' का जन्म जनपद बिजनौर के ग्राम फीना में 31 मार्च सन् 1915 को हुआ। आपके पिता का नाम हरवंश सिंह तथा माता जी का नाम मिश्री देवी था। गजराज सिंह जी की आरम्भिक शिक्षा फीना में ही सम्पन्न हुई। इन्टरमीडिएट तक की शिक्षा ध्यान सिंह मैमोरियल इन्टर कालेज, कांठ (मुरादाबाद) से उत्तीर्ण की । इसके बाद ट्यूबवैल आपरेटर के रूप में सरकारी सेवा में आ गये। डा ऊषा त्यागी के शोध प्रबंध बीसवी शती के हिन्दी साहित्य संवर्द्धन में बिजनौर जनपद का योगदान के अनुसार कृष्णा देवी के साथ विवाह सम्पन्न हुआ। जीवन पर्यन्त सरकारी सेवा के कारण, ट्यूबवैल आपेटर के रूप में ग्राम डींगरा पारा, नारायण खेड़ी आदि गाँवों में रहे तथा अपने गाँव फीना में घर पर खेती-बाड़ी की देखभाल करते रहे। इन तथ्यों को आपको 'आत्म परिचय' नामक अप्रकाशित कविता में जाना जा सकता है। बिजनौर जिले में है एक ग्राम, जिसका मित्रों फीना नाम। वंश बौंक गज का 'दीवान' जन्मजात समझ

आर्य विद्वान डॉ. सत्यप्रकाश (स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती)

24 सिंतबर 1905 के लिए आर्य विद्वान डॉ. सत्यप्रकाश (स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती) चारों वेदों का अंग्रेजी अनुवाद करने वाले पहले भारतीय देश के जाने माने रसायनविद और आर्य विद्वान डॉ. सत्यप्रकाश (स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती) का जन्म उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद के बिजनौर के आर्यसमाज के एक कक्ष में 24 सिंतबर 1905 हुआ था। उन्होंने जीवन का अधिकांश समय इलाहाबाद विश्वविद्यालय में रसायन-विभाग के अध्यक्ष के रूप में बिताया। सेवानिवृत्ति के बाद वे आर्य संन्यासी हुए। आर्य विद्वान के रूप में अपनी पहचान बनाई। वेदों का अंग्रेजी में अनुवाद किया। डॉ. सत्यप्रकाश के पिता पंडित गंगा प्रसाद उपाध्याय बिजनौर राजकीय इंटर कॉलेज में अंग्रेजी के शिक्षक थे। वे आर्य समाजी थे। इसीलिए बिजनौर आर्य समाज में बने एक कक्ष में रहते थे। आज यह कक्ष महिला आर्य समाज का भाग है। इसी में 24 सितंबर 1905 को डॉ. सत्यप्रकाश सरस्वती का जन्म हुआ।पिता पंडित गंगा प्रसाद उपाध्याय के तबादले के बाद इनका परिवार इलाहाबाद चला गया। विद्वान डॉ. सत्यप्रकाश (स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती) की शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हुई। 1930 में

नही रहे जाने माने चित्रकार सुशील वत्स

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(( 23 सिंतंबर 2023 चिंगारी −−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−− नही रहे जाने माने चित्रकार सुशील वत्स अशोक मधुप देश के जाने−माने चित्रकार सुशील वत्स का 26 जुलाई 2023 को मंडी धनौरा के आनन्द आश्रम में निधन हो गया।वे 93 वर्ष के थे। वत्स का जन्म 19 सितंबर को 1930 चांदपुर के मोहल्ला साहुआन में हुआ। सुशील वत्स के पिता मंडी रघुवीर सिंह शर्मा धनौरा के जूनियर हाईस्कूल में मुख्य अध्यापक थे। उनके पिता दीवारों पर सीमेंट से देवी- देवताओं की मूर्तियां बनाते थे। इन मँर्ति को देखकर बालक सुशील में चित्रकला के प्रति शौक पैदा हुआ। वे चित्र बनाने लगे। इस शौक में वे इतने रमें कि उसी को जीवन का लक्ष्य बना लिया। कुछ कर गुजरने के जज्बे ने सुशील वत्स के हाथ में कूंची दे दी और विश्व प्रसिद्ध बना दिया। सुशील वत्स ने कला की बारीकियों को समझा और मोड्रन आर्ट में अपना कैरियर बनाना तै किया। उन्होंने पूरी दुनिया में अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगाई।उनकी पेंटिंग पांच लाख रूपये मूल्य तक में बिकीं। एक साक्षात्कार में सुशील वत्स बताते हैं कि जब उन्होंने कला में भविष्य बनाना तै किया औ

एक सी कहानी है बिजनौर के दो परिवार की

    एक सी कहानी है बिजनौर के दो परिवार की बिजनौर के कलाल जाटों    का संघर्ष ,  झालू के गर्ग पठानों की लड़ाई   अशोक मधुप इतिहास पढेंगे    तो    लगेगा कि कुछ घटनांए एक सी हैं।सच्चाई में वे अलग− अलग हैं।इसी प्रकार की घटना    है    बिजनौर के    बुखारे के कलाल और बिजनौर के जाटों    के संघर्ष    की है।    दूसरी है झालू के गर्ग परिवार और प्रतिद्वंदी मुस्लिम परिवारों के संघर्ष की।     पुरानी मान्यताओं के अनुसार    16 वीं शताब्दी के आसपास    बिजनौर में एक बड़ी घटना    हुई। यहां मुस्लिम कलाल और जाट    उस समय प्रमुख रूप से रहते थे। कलाल बुखारे में रहते थे। ये जाटों से कुछ नाराजगी महसूस करते थे। उन्होंने    अपने यहां शहर के सभी जाटों की दावत की। दावत के लिए बने खाने में जहर मिला    दिए जाने के कारण महिलाऔर बच्चों समेत सभी जाट मर गए। जाट     परिवार की एक    गर्भवती    बहु अपने मैके में थी।उसके बच्चे को इसके परिवार के गुरू    पंडित जी ने    पाला। 1907 के जिला गजेटियर   में       इस घटना के बारे में     दिया है कि     यह स्थान बिजनौर लंबे समय से   जाटों   का गढ़ रहा है ,   और परंपरा

बिजनौर के इतिहास से गायब हैं क्रांति की मशाल जलाने वाले

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 बिजनौर के इतिहास से गायब हैं क्रांति  की मशाल जलाने वाले अशोक मधुप बिजनौर जनपद में 1857 की क्राति में  प्रथम आहूति देने वाले जेल के राम स्वरूप जमादार को कोई जानता  भी नहीं।पूरे देश में शुरू हुई 1857 की क्रांति दस मई को मेरठ से  शुरू हुई।नौ मई 1857 को चर्बी लगी कारतूस का इस्तेमाल करने से मना करने वाले 85 सिपाहियों का कोर्ट मार्शल कर मेरठ की विक्टोरिया पार्क स्थित जेल में बंद कर दिया था। सैनिकों पर हुई इस कार्रवाई और अपमान ने क्रांति को जन्म दे दिया। 10 मई को शाम होते-होते अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह भड़क उठा। आम जनता और पुलिस ने जहां सदर बाजार में मोर्चा संभाला। उधर उसी समय 11वीं व 20वीं पैदल सेना के भारतीय सिपाही परेड ग्राउंड (अब रेस कोर्स) में इकट्ठे हुए और वहीं से अंग्रेजी सिपाहियों और अफसरों पर हमला बोल दिया। पहली गोली 20वीं पैदल सेना के सिपाही ने 11वीं पैदल सेना के सीओ कर्नल जार्ज फिनिश को रेस कोर्स के मुख्य द्वार पर मारी थी। इस बीच थर्ड कैवेलरी के जवान अश्वों पर सवार होकर अपने उन 85 सिपाहियों को बंदी मुक्त कराने विक्टोरिया पार्क स्थित जेल पहुंच गए, जिन्हें कोर्ट मार्शल के तहत सजा द