गजराज सिंह गज
गजराज सिंह गज
फीना निवासी गजराज सिंह गज ग्रामीण पृष्ठ भूमि से रहे । वे जनपद के एक मात्र कवि रहे जिन्होंने प्रकृति,ग्राम, ग्रामवासी और खेती पर लिखा। गजराज सिंह 'गज' का जन्म जनपद बिजनौर के ग्राम फीना में 31 मार्च सन् 1915 को हुआ। आपके पिता का नाम हरवंश सिंह तथा माता जी का नाम मिश्री देवी था। गजराज सिंह जी की आरम्भिक शिक्षा फीना में ही सम्पन्न हुई। इन्टरमीडिएट तक की शिक्षा ध्यान सिंह मैमोरियल इन्टर कालेज, कांठ (मुरादाबाद) से उत्तीर्ण की । इसके बाद ट्यूबवैल आपरेटर के रूप में सरकारी सेवा में आ गये।
डा ऊषा त्यागी के शोध प्रबंध बीसवी शती के हिन्दी साहित्य संवर्द्धन में बिजनौर जनपद का योगदान के अनुसार कृष्णा देवी के साथ विवाह सम्पन्न हुआ। जीवन पर्यन्त सरकारी सेवा के कारण, ट्यूबवैल आपेटर के रूप में ग्राम डींगरा पारा, नारायण खेड़ी आदि गाँवों में रहे तथा अपने गाँव फीना में घर पर खेती-बाड़ी की देखभाल करते रहे। इन तथ्यों को आपको 'आत्म परिचय' नामक अप्रकाशित कविता में जाना जा सकता है।
बिजनौर जिले में है एक ग्राम,
जिसका मित्रों फीना नाम।
वंश बौंक गज का 'दीवान'
जन्मजात समझो चौहान ।
हरवंश सिंह 'गज' पिता का नाम
खेती करना घर का काम
जन्म तिथि कर लो ध्यान ,
इक्तीस मार्च सन् पन्द्रह जान ।
गजराज सिंह 'गज' की रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं लेकिन उनका कोई स्वतन्त्र संकलन प्रकाशित नहीं हो सका। अधिकांश रचनाएँ पाण्डुलिपि के रूप में धूल खाती रहीं । कतिपय पाण्डुलिपियाँ गलत हाथों में पड़ गई। इनका सदुपयोग नहीं हुआ। गजराज सिंह अपनी शासकीय सेवा में सुदूर ग्रामीण अंचलों में रहे। इस कारण लोकमानस पर उनकी गहन जानकारी थी। खाली समय में वह चिंतन, मनन के साथ ही साथ ईश्वर भक्ति में लीन रहते थे तथा साहित्य एवं समाज सेवा में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वाह करते थे ।
गजराज सिंह 'गज' ने काव्य के क्षेत्र में ही, अपनी लेखनी के चमत्कार दिखाये। आप अपने समय के चर्चित कवियों में स्थान रखते थे। गाँव, खेती से निकट सम्बन्ध होने के कारण उनकी रचनाओं में ग्रामीण परिवेश, अपना विशिष्ट महत्व रखता है। अधिक अन्न उपजाओं' शीर्षक कविता, उनकी चर्चित कविताओं में से एक है।
गज जी ने 'दोहे', 'मुक्तक', 'नीति के दोहे', 'दुमदार दार दोहे', 'नल दमयन्ति कथा', 'गाँधी जी के निधन पर', 'नेहरु जी के बारे में', 'आत्म चिंतन', '15 अगस्त 1947 की स्मृति में', 'भारतीय कृषक', 'गुरु महिमा', 'भारत दशा', 'विद्यार्थी जीवन', 'स्त्री शिक्षा महत्व', 'राष्ट्र ध्वज' शीर्षक से महत्वपूर्ण काव्य रचनाएँ की हैं।
जनपद बिजनौर की इस अप्रतिम प्रतिभा का निधन सन् 1967 ई० को अपने ग्राम फीना में ही हुआ। प्रचार-प्रसार से कोसों दूर यह अनन्य साहित्य सेवी, उतना महत्व नहीं पा सका, जिसका वह हकदार था। वर्तमान समय में, गजराज सिंह 'गज' का नाम लगभग भुला दिया गया है। उनके वंशजों के पास, आज भी गज जी की पाण्डुलिपियाँ रखी हैं, लेकिन उनका प्रकाशन सहज नहीं लगता। गज जी की एक पाण्डुलिपि में लिखी टिप्पणी उल्लेखनीय है
'कविता में विषयों का चयन सामयिक और उपदेशप्रद है....दिन-रात के व्यस्त जीवन से अवकाश पाकर कुछ लिख भी लेना, गजराज सिंह जी की अपनी प्रतिभा का ही परिचायक है।
गजराज सिंह 'गज' जैसे साहित्य सेवी पर स्वतन्त्र शोध कार्य होना अपेक्षित है जिससे विस्मृति के गर्त में दबे ढके इन रत्नों का समग्र मूल्यांकन सम्भव हो सके। गज जी के ही शब्दों में
फिर भी है मन में सन्तोष,
नेकी कर 'गज' रह खामोश।
गांव वालों के अनुसार ये ड्यूटी के बहुत पक्के थे। ड्यूटी के दौरान 24 घंटे ट्यूबवैल पर ही रहते थे। कविता लिखने के शौक के कारण आसपास के लोग और इनके अधिकारी भी इनको जानते थे। आसपास के लोग इन्हें कवि जी के नाम से पुकारते थे। गजराज सिंह गज ने जिला स्तर पर हुई कुछ काव्य गोष्ठियों में भी प्रतिभाग किया था। 57 साल की आयु में गजराज सिंह का निधन हो गया।
अशाेक मधुप
Comments
Post a Comment