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Showing posts from August, 2022

स्वर्गीय राजेंद्र पाल सिंह कश्यप

    स्वर्गीय राजेंद्र पाल सिंह कश्यप जन्म छह जुलाई 1921 निधन 17   अप्रेल 1992 बिजनौर जनपद के वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र पाल सिंह का जन्म छह जुलाई   1921 को हुआ।   आपके पिता का नाम स्व. किशन सिंह था।राजकीय हाई स्कूल बिजनौर से उर्दू और इतिहास के साथ 1938   हाई स्कूल पास किया। 1940 में अंग्रेजी साहित्य, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान जन्तु   विज्ञान   और अर्थशास्त्र के साथ लखावटी कालेज से इंटर और 1942 में आगरा विविवद्यालय से बीएससी किया। बीएससी करने के बाद कश्यप साहब बर्मा शैल कंपनी में सहायक प्रबंधक बने।21 दिन   बाद ही कंपनी से त्यागपत्र देकर बिजनौर चले आए   और अपना पूरा जीवन पत्रकारिता को संमर्पित कर दिया।   बिजनौर मुख्यालय पर वे टाइम्स आफ इंडिया,हिंदुस्तान टाइम्स,नेशनल हैरल्ड, पायनियर, नार्दन इंडिया   पत्रिका और अंग्रेजी समाचार एजेंसी पीटीआई के संवाददाता रहे। उन्होंने 1950 के दशक में अंग्रेजी के टिट −विटस का पाक्षिक संपादन और प्रकाशन शुरू किया।1964 में उन्होंने बिजनौर टाइम्स   दैनिक का संपादन भी किया।   वे इस अखबार के संस्थापकों में   थे। मूल रूप से वह अंग्रेजी के पत्रकार थे ।

आजादी के अमृत महोत्सव से गायब है पूण्य भूमि बिजनौर

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बिजनौर के आजादी के अमृत महोत्सव पर चिंगारी सांध्य में मेरा लेख- आजादी के अमृत महोत्सव से गायब है पूण्य भूमि बिजनौर अशोक मधुप हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। क्रांतिकारियों का स्मरण कर रहे हैं, किंतु उन जगह की किसी को याद नहीं, जहां क्रांतिकारियों को फांसी दी गई थी। उनके शहीद स्थल किसी को याद नहीं।इन शहीदस्थल पर जाकर श्रद्धासुमन अर्पित करने का किसी को ख्याल नहीं।गुलामी के प्रतीक स्थानों के नाम बदलने की आजतक किसी ने नहीं सोची। बिजनौर का मुहल्ला पामरगंज अंग्रेज डिप्टी कलेक्टर का नाम बसा है। इसका नाम बदलकर जिले के किसी क्रांतिकारी के नाम पर हो सकता है। 1857 की क्रांति की सबसे बड़ी गवाह बिजनौर जिलाधिकारी की पुरानी कोठी है।यहीं अंग्रेज कलेक्टर अलेक्जेंडर शेक्सपीयर ने छह –सात जून की रात में नजीबाबाद के नवाब महमूद को जिले का कार्य सौंपा था। इसके बाद जिले के अंग्रेज अधिकारी और उनके परिवार रूड़की के लिए रवाना हो गए।एक साल बाद जब अंग्रेज सेना के बूते फिर जिले में काबिज हुआ तो उसने बेइंतहां जुल्म किए। दिल्ली की सेना के कमांडर इन चीफ गवर्नर जनरल बख्त खान की पैदायश स्थल नजी

कभी खोखरा मैदान नाम था प्रदर्शनी स्थल का

  अशोक मधुप बिजनौर का   प्रदर्शनी मैदान   कभी खोखरा मैदान कहलाता था।यह सेना के पड़ाव की भूमि थी। यह मैदान चांदमारी का मैदान भी कहा जाता रहा है। बाद में इसका बंटवारा हुआ।स्टेडियम तक की भूमि जिला प्रशासन को मिली। आगे की सेना ने अपने पास रही।जिला प्रशासन ने आधी भूमि   में स्टेडियम बनाया। आधी प्रदर्शनी मैदान के लिए नगर पालिका बिजनौर के पास रही। आज का प्रदर्शनी मैदान कभी आर्मी के पड़ाव की जगह थी। पहले जरूरत पड़ने पर एक जगह से दूसरी जगह फ़ौज आती −जाती रहती थी। उसके रुकने के लिए स्थान -स्थान पर जगह छूटी हुई थी। इन जगहों को आर्मी के पड़ाव की जगह कहा जाता था।प्रदर्शनी मैदान से लेकर इंदिरा पार्क तक की जगह आर्मी के पड़ाव की जगह थी। इस पूरे मैदान को खोखरा पौंड या खोखरा मैदान भी कहा जाता रहा है। दरअसल इस जमीन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें कितना भी पानी भर जाए , यह पानी कुछ घंटों में जमीन में समा जाता है। जमीन के इसी गुण के कारण इस जमीन को खोखला या खोखरा कहा गया।ये खोखला या खोखरा मैदान या   खोखरा पौंड कहा जाता रहा है।    एक और बात यह क्षेत्र दूसरे क्षेत्र से निचाई पर था, इसलिए इसमें पानी