नगीने का लकड़ी पर नक्काशी का कारोबार
अशोक मधुप
नगीना आज लकड़ी पर नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है, किंतु कभी
नगीना
की प्रतिष्ठा इसकी लकड़ी की नक्काशी के बजाय इसके धातु उद्योगों पर थी। इसे अक्सर बंदूक बनाने की
कला के साथ जोड़ा जाता था। माचिस की तीलियों को नक्काशीदार लकड़ी के चार डिब्बों में रखकर 1867 की पेरिस प्रदर्शनी में भेजा गया था। प्रत्येक डब्बे को 375
फ़्रैंक की कीमत पर बेचा गया था। यह स्थान लंबे समय से धामपुर और
नजीबाबाद की तरह हथियारों के बनाने के लिए
प्रसिद्ध था।*
आज बिजनौर जिले की सबसे महत्वपूर्ण पुराने समय की
औद्योगिक कला नगीने की लकड़ी पर नक्काशी
है । ऐसा कहा जाता है कि यह शिल्प मुल्तानी व्यापारियों द्वारा नगीना
लाया गया। नगीना के कारीगर पीढ़ियों से आबनूस की गनस्टीक ,खाट ,पाये और मसनद बनाते रहे हैं। ये आमतौर पर उन्हें सतही
पुष्प पैटर्न से सजाते हैं। बाद में इन कारीगरों ने कैबिनेट बनाने में उच्च दक्षता हासिल कर ली । यह
उद्योग ज्यादातर मुसलमान कलाकार और उद्योगपतियों
के हाथों में है और डिजाइन, ज्यामितीय या पुष्प, छेनी द्वारा नाजुक और स्पष्ट राहत में
बनाए गए थे। निर्मित अन्य सजावटी वस्तुएँ इंकस्टैंड, फोल्डिंग टेबल, ट्रे, ताबूत, स्क्रीन, चित्र फ़्रेम और चलने की छड़ें थीं।
कभी-कभी लकड़ी पर चांदी, मोती और हाथी दांत जड़े होते थे। यहां
के उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति
प्राप्त हुई और भारत, लंदन, ग्लासगो और पेरिस में आयोजित प्रदर्शनियों में पुरस्कार से सम्मानित
किया गया।
नगीना शहर में अब पांच या छह बड़ी कार्यशालाएं
हैं जो काफी कर्मचारियों को रोजगार देती
हैं।
इस
उद्यो के कई आइटम को पुरस्कार मिला है। ये उद्योग, जो लंबे समय से स्थिर और सुस्त स्थिति में था, अब फल-फूल रहा है। कभी-कभी काली लकड़ी
को चांदी, मदर-ऑफ़-पर्ल और हाथीदांत से जड़वाकर
कुछ हद तक सुधार का प्रयास किया जाता है; लेकिन आम तौर पर यह माना जाता है कि
बाहरी अलंकरण बेकार हो जाता है और मूल काम की कलात्मक खूबियों को ख़राब कर देता
है।* अब हाथी दांत और आबनूस की लडकी मिलनी
बंद हो गई।आबनूस की जगह अब
शीशम और आम की लकड़ी इस्तमाल होने लगी। उद्योग विभाग के अनुसार नगीने का काष्ट कला
उद्योग का टर्न ओवर अप्रत्यक्ष रूप से
400− 500 करोड़ का है। प्रत्यक्ष रूप से टर्न ओवर चार करोड़ रूपया प्रतिवर्ष है।
नगीने के तीन
कलाकारों को राष्ट्रपति पुरस्कार मिला है। पहला पुरस्कार अब्दुल रशीद को सींगारदान
बनने पर मिला।दूसरा पुरस्कार अब्दुल बशीर को और और तीसरा पुरस्कार
अब्दुल रशीद दोनों को कंघी पर दिया
गया। नगीना के काष्ट कला के बड़े व्यापारी जुल्फिकार आलम का कहना है कि अब सरकार इस उद्योग को बढ़ावा दे रही है। प्रदेश सरकार की योजना एक जिला एक उद्योग नगीना के लकड़ी के उद्योग को शामिल किया गया है। इसके तहस प्रदेश सरकार 25 प्रतिशत सब्सीडी देने लगी है।
*जिला गजेटियर 1907
-* अशोक मधुप का
ब्लाँग बिजनौर जनपद का इतिहास
Comments
Post a Comment