मुगल काल से कभी कम नही हुई कालागढ़ की महत्ता

 


 शिवालिक पहाड़ि‌यों की तलहटी में बसे  विविध वनस्पतियों व जीव जन्तुओं से भरपूर कालागढ की स्थापना कब कैसे हुई! इसका किवद्‌त्तियों के अलावा कहीं अन्य सटीक ऐतिहासिक प्रमाण मध्यकालीन ऐतिहासिक पुस्तकों में भी नहीं मिलता ।  यह तो निर्विवाद सत्य ही कि पहाड़ी तलहटियों से सटे मैदानी आबादी  के निकट के समतल स्थान पहाड़ी और देशी व्यापारियों के व्यापार स्थल होते थे। विज्ञान की उन्नति के बाद  आज भी ये अपना व्यापारिक स्वरूप बनाए हैं। जैसे गढ़वाल में कोटद्वर-नजीबाबादहरिद्वार ऋषिकेशदेहरादूनकुमायूँ क्षेत्र में काशीपुररामनगर, हल्द्वानीतथा कालाढुंगी।इसी तरह कालागढ़ भी कभी  कोटद्वार और रामनगर के मध्य बसे निवासियों का व्यापार स्थल था। इन व्यापारियों को  तत्कालीन भाषा में झोजाभरिया कूंजड़े आदि नामों से जाना जाता था । उन‌की वर्त‌मान

में बूढ़ी हो चुकी  पीढ़ी भी चटकारे लेकर उस समय के किस्से सुनाती है। व्यवसायी हरीशचंद्र, जितेंद्र जैन और मंगू सिंह   कहते ही कि यहां शुक्रवार को  वर्तमान रामलीला मैदान व हेलीपेड स्थल में बाजार लगता था। 

 रेहड़ के  पत्रकार अशोक कुमार शर्मा के अनुसार  पहाड़ के व्यापारी अपने खच्चरों पर माल   लादकर एक दिन पहले यहां आ जाते थे ।शनिवार की सुबह अपना माल बेचकर और नई  खरीदारी कर वापस लौटते थे। पे लोग पहाड़ में होने वाले मिर्चहल्दीचौलाई दानाकोटू, अरहर उड़द  आदि वस्तु लाते उसके बदले स्थानीय व्यापारियों  से गुड़ शीरानमक, मिट्टी का तेल आदि सामान ले जाते । ये   वस्तु विनिमय के  अंतर्गत खरीदारी करते  थे।

इतिहास के पन्ने पलटने पर पता चलता है  कि  चौदवीं शताब्दी के अन्त व पन्द्रहवी  शताब्दी के प्रथम दशक में जब भारत में खिलजी वंश का राज था ।  दिल्ली की गददी पर  जलालुदीन खिलजी आसीन था । वह बहुत सरल प्रवृति का था। परंतु  इसका भतीजा अलाउद्‌दीन बहुत महत्वकांक्षी था। वह  अपने चाचा की गद्दी हथियाने के फिराक में रहता था। जलालुदीन ने अलाउ‌दीन को अपना

विश्वास पात्र मानते हुए उसे बदायूँ क्षेत्र का सूबेदार  बना दिया था। लेकिन वह

इससे सन्तुष्ठ नहीं था ।दिल्ली की गद्दो पर काबिज होने के लिए उसे सैन्यबल ,धनबल और कूटनीति बल की जरूरत थी। उसे पता चला कि

 

 कुमायूँ के दुर्गम पहाड़ी पर रहने वाले राजाओं के पास अतुल  सम्पत्ति है।  क्योंकि ये राज्य

भौगोलिक सुरक्षा परिवेश के कारण मुस्लिम आक्रान्ताओं से बचे रहे थे। इसलिए अपने लक्ष्य की पूर्तिके लिए उसने इन राज्यों पर आक्रमणकर धन लूटने की योजना बनायी और चौहदवी शताब्दी के अन्तिम द‌शक में इन रियास‌तों पर हम‌ला किया। इसमें इसे आशा से अधिक धन् मिला । बरसात ने पहाड़ी नदियों का भयंकर  प्रकोप होता है। उसे पहांड़ी नदियों के बीच सैना  समेत अपने घिर जाने का   भय था। उसने सुरक्षित  गढ़वाल −कुमांयू  के मिलन स्थल कालागढ में    बरसात में डेरा डालकर रूकना  उचित सम‌झा।

क्योंकि  यहां पर्याप्त मैदान होने के कारण सैना का रूकना सरल था। जलाने के लिए यहां पर्याप्त लकड़ीसेना के पशुओं   के लिए हरा चारा व पीने के  लिए नदियों का पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध था।  लश्कर की जरूरत के सामान  के लिए यहां व्यापारियों भी सुलभ थे।  उसने  अफजलगढ़शेरकोट,रेहड  व बड़ी मात्रा में आसपास के व्यापारी से तीन चार माह को राशन व अन्य जरूरी  सामान उप‌लब्ध करने को कहा।  कालागढ़ में कैम्प के जिम्मेदार सिपहसालार काले खान थे। अफजलगढ़ में बनाई सुरक्षा चौकी की जिम्मेदारी अफजल खान को सौंपी। उसने सुरक्षा के लिए अफजलगढ़ में एक किला भी बनवाया।सका मुख्यद्वार  टूटी −फूटी हालत  में नगर पालिका के दफ्तर के निकट बना है। कहा जाता है कि उस समय इस क्षेत्र का नाम रायगढ़ था।बाद में अफजलखान के नाम पर इसका नाम अफजलगढ़ हो गया।

कोटद्वार −कण्डी मार्ग पर  कालागढ़ से  लगभग  पांच  किलोमीटर   दूर काले खान की मृत्यु हो गई। यहीं  पर  इसका मजार बन गया। । आज इसे कालूपीर कहतें है।

जनपद का  पहला गजेटियर कालू खां को कालू सैयद बताता है। कहा जाता वि उस समय नगर को राम - गढ़ कहा जाता था। जिसे अफजल खां व अफजलगढ बना दिया। वर्तमान मेंरामनगर  कालागढ़ कोटद्वार मार्ग पर कालागढ़ से पांच किलो मीटर दूर कालू खान  

मजार है ।इसे लोग कालू शहीद या कालू पीर की मजार बतातें हैं। हर बृहस्पतिवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंच कर मन्नत मांगते हैं। इसी कालू खान के के नाम पर इस स्थान का  नाम कालागढ़ पड़ा।

अब बात करते हैं वर्तमान कालागढ़ की। यह प्रमाणिक है। वर्तमान कालगढ क्षेत्र में  वन्य जीव  बड़ी मात्रा में पाए  जाते हैं।अंग्रेजों के शिकार और  एडवेंचर  प्रेमी होने के कारण यह क्षेत्र ब्रिटिश काल में उन‌‌का शिकार गाह रहा। सुविधा के लिए  मोर घट्‌टी नामक पर एक डाक बंगला बनवाया गया।यह जगह वर्तमान में शहीद काले खान  के  मनार के नाम से प्रसिद्ध थे । 1936 में यहां घूमने आए उत्तर प्रदेश  के तत्कालीन गर्वनर मि. हेली

को यह स्थान पसन्द आया ।उन्होंने    इसे राष्ट्रीय पशु  विहार बनाने का  प्रस्ताव रखा । इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए अंग्रेज सरकार ने कालागढ़ और ढिकाला क्षेत्र को शामिल करते हुए इसका नाम हेली नेशनल पार्क कर दिया ।इसके बाद समय ने फिर करवट ली । रूद्रप्रयाग से नैनीताल तक का क्षेत्र विश्व प्रसिद्ध शिकारी जिम कार्बेट की शिकारगाह बन गया । शिकार पर उसके द्वारा दर्जनों पुस्तकें लिखी गईं । कालाढूंगी के निकट नैनीताल तिराहे पर बनी पनाहगाह आज भी मौजूद है। इसको केन्द्र सरकार ने सरंक्षित कर म्यूजियम बना दिया।  सरकार ने हेली नेशनल पार्क का नाम बदल कर  कार्बेट नेशनल रिर्जव  पार्क बना दिया।  आज विशाल क्षेत्र में  फैले इस वन क्षेत्र में हर वर्ष पूरे विश्व में वन्य पशु प्रेमी यहाँ आते थे। 1272 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में इसका  बफर जोन झिरखाअमानगढ़पाखरों है, जबकि कालागढ़ ,ढ़ेलाब्रिजयानी गर्जियाढिकाला मोरघट्‌टी आदि इसको वनरेंज हैं।

 

आइये आप बात करते कालागढ़ की भारत के लिए औद्योगिक व कृषि क्षेत्र में महत्व पूर्ण योगदान की ।क्योंकि इस  पहाड़ी पर निरंतर बहने वाली रामगंगा जैसी नदियाँ मौजूद हैं। 1957 में भारत तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर नेहरू ने मिस्टर  बीकले की रिपोर्ट आधार पर एशिया के प्रथम और  172 मीटर ंचे मि‌ट्टी के बांध और विद्युत उत्पादन केन्द्र का निर्माण शुरु कराया यह कार्य  1974 तक चला। इसी वर्ष  विद्युत उत्पादन भी शुरू हुआ।बांधकालोनियों व अन्य उपक्रम के  लिए बड़ी मात्रा में जमीन अर्थ, राजस्व व वन विभाग से 100 वर्षों के लिए लीज पर ली गई। बांध निमार्ण  पूरा हो गया ।लीज की अवधि पूरी हो गई।  इस दौरान  वन्य जीवों का कुन‌बा तेजी से बढ़ा । उसके आबादी की ओर रूख करने से  मानव व वन्य जीवो के बीच संघर्ष की घटनाए बढ़ने लगीं। राष्ट्रीय हरित  क्राति व पर्यावरण प्रदूषण

विभाग के आदेश पर  सिंचाई विभाग ने सैंकड़ो हेक्टेयर जमीन  वन विभाग को  सौंप दी। वन विभाग ने इस स्थान  के भवनों  को नष्ट कर दिया ।

जंगलोंपहाड़ियो के बीच नेपाल की सीमा के निकट इस वांध सुरक्षा के लिए सरकार ने काला गढ़ के आस −पास बारह भूतपूर्व सैनिकों की काँलोनीयों की स्थापना की। इससे इस स्थान को प्रशासनिक व नागरिको की दोहरी सुरक्षा देने का प्रयास  किया गया।

उत्तराखण्ड कालागढ़ विभाजन के  यहां के प्रतिष्ठानों  बाद - दोनों प्रदेशों का साझा अधिकार है। समझौते के तहत बिजली उत्पादन पर उत्तराखण्ड और रामगंग में छोड़े गये पानी पर यूपी के सिचाई विभाग का अधिकार है।

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