आस्तिक ऋषि का मठ
center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh51IvJc7-f1ddTvqsOpl7pI3NdWpvKQaJ3EkLT-qkDOC3lf_FfguHzM9teE6UEY6Go0ujoYMwlDka5WwBxOdKQRm-4IiDKsMI5O1zGKUBjWxtv5yOIaFZ5sYrv9yyCcnwcDvPY9SBpWS0c/s1016/nilavala+astik+matha.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="881" data-original-width="1016" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh51IvJc7-f1ddTvqsOpl7pI3NdWpvKQaJ3EkLT-qkDOC3lf_FfguHzM9teE6UEY6Go0ujoYMwlDka5WwBxOdKQRm-4IiDKsMI5O1zGKUBjWxtv5yOIaFZ5sYrv9yyCcnwcDvPY9SBpWS0c/s320/nilavala+astik+matha.jpg" width="320" /></a></div><p></p><p>अशोक मधुप</p><p>बिजनौर।
बहुत कम लोग जानते हैं कि महाभारत काल में राजा जन्मेजय का नाग यज्ञ
रूकवाने वाले आस्तिक ऋषि का मठ बिजनौर जनपद में है। यह मठ बिजनौर से
लगभग चार पांच किलोमीटर दूर नीलावाला गांव के जंगल में स्थित है। पुराने
लोग इस मठ के बारे में जानते हैं। नई पीढ़ी को इस बार में कोई रूचि नहीं
है। </p><p> बिजनौर से पांच किलोमीटर दूर गांव आलमपुर उर्फ नीलावाला है।
इसके जंगल में आस्तिक मठ है। इतिहास के जानकारों का कहना है कि वर्तमान
स्थल पुराना तो नहीं है। हो सकता है कि गंगा के बहाव क्षेत्र में होने के
कारण अवशेष खत्म हो गए हों। 25 साल से आस्तिक मठ के पुजारी मुन्ना भगत
यहां आने वालों को बताते थे कि जन्मेजय के यज्ञ को रुकवाने वाले आस्तिक ऋषि
की यहां समाधि है। </p><p>मुन्ना भगत की मृत्य़ के बाद तीन चार साल से अब
इस मठ की देखरेख गंभीर भगत कर रहे हैं। वे कहते हैं कि यहां आसपास काफी
सांप होते हैं। मठ पर मौजूद गांव के बलजीत सिंह बताते हैं कि मठ के पास
के पीपल के नीचे काफी बड़े तीन सांप दिखाई देते रहते हैं। गंभीर भगत कहते
हैं कि मठ की बहुत मान्यता है। रविवार और सोमवार को काफी श्रद्धालु यहां
आते आकर पूजा करते हैं। </p><p>हैं।</p><p>नीलावाला के निवासी शिक्षक
हंरवत सिंह का कहना है कि आस्तिक मठ की बहुत मान्यता है। किंतु सरकारी स्तर
पर इसके लिए कोई कार्य नहीं हुआ। जनपद महाभारत सर्किट में आता है किंतु
महाभारत कालीन इस स्थल की हालत पहले जैसी ही है।</p><p>कथा</p><p>महा भारत
की कथाओं में आता है कि राजा परीक्षित एक बार शिकार के लिए निकले थे और जल
की खोज में वे शमीक ऋषि के आश्रम में पहुंच गए। उन्होंने तपस्या में लीन
ऋषि से पानी मांगा। तपस्यारत ऋषि के ध्यान न देने पर उन्होंने पास में पड़ा
मृत सांप बाण की नोक से उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया। तपस्या में लीन
ऋषि को तो इस घटना का पता नहीं चला, किंतु उनके पुत्र श्रृंगि ऋषि ने घटना
का पता लगते ही परीक्षित को श्राप दिया कि सातवें दिन उन्हें तक्षक सर्प
डसेगा।तक्षक के डसने से राजा परीक्षित की मृत्यु हो गई। इससे गुस्साए उनके
बेटे राजा जन्मेजय ने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्प प्रजाति के
विनाश का निर्णय लिया।उन्होंने सर्प यज्ञ कराया। मंत्रों के प्रभाव से सर्प
यज्ञ कुंड में आकर भस्म होने लगे।</p><p>जाति का विनाश होते देख सारे नाग
भाग कर अपने नाग ऋषि आस्तिक के पास आए। उन्होंने उनसे नाग प्रजाति का
विनाश रोकने का प्रयास करने का आह्वान किया। उनके अनुरोध पर आस्तिक ऋषि
यज्ञ स्थल पर गए।अपनी बातों से इन्होंने राजा जन्मेजय का प्रभावित कर
लिया। जन्मेजय को समझाया कि एक व्यक्ति की गलती का दंड पूरी प्रजाति को
देना ठीक नहीं। नाग प्रजाति का नाश होने से प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाएगा
।उनके समझाने पर यह यज्ञ नाग यज्ञ रोक दिया गया। यज्ञ रुकने के दिन पंचमी
थी। तभी से ये पंचमी नागपंचमी के रूप में मनाई जाती है। </p><p>अशोक मधुप</
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