अहरौला गांव

 बास्टा से  आगे अहरौला गांव हैं।इस गांव में एक ही परिवार के व्यक्ति रहतें हैं!  वैसे तो लगभग सभी जाति के व्यक्ति रहतें हैं  किंतु जाटों का एक परिवार यहां  फल −फूल रहा है।

इस परिवार के सदस्य बतातें हें कि हमारे पूर्वज लगभग  1702 में हरियाणा प्रांत के महम कस्बे से मानक चौक जिला गाजियाबाद आए। आपसी विवाद के कारण  वहां से लगभग 255 साल पहले इस स्थान  पर आ गए। हमारे पूर्वज देशराज सिंह ने यह   ग्राम अहरौला बसाया और यहीं  रह गए। उनका परिवार बढता रहा।यहां रहने वाले जाट सभी पस में तहेरे −चचेरे भाई बहिन है।

गांव के पश्चिम में बहुत ऊंचा खेड़ा था। हम लोगों के आने से पहले यहां गूजर  रहते थे। वे इस  खेड़े की पूजा करते थे।उनके यहां से जाने के कारण का पता नही चला। उनके जाने के  बाद हमारे पूर्वज इस स्थान को देवता के रूप में पूजने  लगे। यह लगभग  12 से 15 फिट ंचा स्थान था।इस पर कई तरह के वृक्ष और झाड़ खड़े थे।   इस स्थान के लिए पहले लगभग चार बिघा जमीन छूटी हुई थी। सन 1962−63 में पास के किसान ने चकबंदी में इसकी कीमत लगवाई और इसे अपने खेत में मिला लिया।अब यह चक कटकर सोहन पुत्र चूहां सिंह के पास है। चक होने के कारणा यहां से मिट्टी उठती गई।नींचे  से ईंट निकलती गईं।

ईंट निकलती देख ग्राम वालों को लगा कि यहां कोई प्राचीन इमारत रही होगी। मिट्टी निकलने के क्रम में   जब खेत को  वर्तमान स्थिति में लाया गया तो सोहन के पुत्र छोटे द्वारा चबूतरा खोदते समय एक बकेन के वृक्ष की जड़ में दे  शिवलिंग जलहेरी समेत मिले।खुदा के समय मौके पर खड़क सिंह की पत्नी परमों भी बैठी थी। इससे पहले दिन यहां से खुदाई में चार चांदी के सिक्के मिल चुके थे।

शिवलिंग और सिक्के किस काल के हैं, ये रहस्य बना हुआ है। 

अशोक मधुप


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