पांच पीढ़ी से संगीत की सेवा कर रहा है बिजनौर का घराना
पांच पीढ़ी से संगीत की सेवा कर रहा है बिजनौर का घराना
अशोक मधुप
बिजनौर का एक म्युजिक घराना पांच पीढ़ी से संगीत गायन और वादन क्षेत्र में सेवा दे रहा है। इस घराने के अजय झिंगरन ने फिल्मी दुनिया में बिजनौर का नाम रोशन किया।
अजय झिंगरन फिल्मी दुनिया का एक उभरता सितारा रहे। वह धूमकेतु की तरह आए।अपना वजूद दिखाया और इस दुनिया से मात्र 46 साल की आयु में ही विदा हो गए।कोई जानता भी नही कि ये बिजनौर के रहने वाले थे।इनके दादा रम्मो गुरू (रम्मो उस्ताद )संगीत गायन और कत्थक के विशेषज्ञ थे । रम्मो गुरू से ही अजय झींगरन ने गायन वादन और संगीत सीखा।रम्मो गुरू को अपने पिता से मिली इस विरास्त को पूरा घराना संभालने और आगे बढ़ाने में लगा है।इस घराना विज्ञान और कला का संगम हैं।
राम शरण शर्मा (रम्मो गुरू) एमएससी केमिस्ट्री से करके शादी लाल ग्रुप की चीनी मिल में कैमिस्ट हुए । शादी लाल ग्रुप की विभिन्न मिल में काम किया और चीफ केमिस्ट से सेवानिवृत हुए।वे रसायन विज्ञानी थे। इसके बावजूद संगीत उनकी रंग −रंग में भरा था। बिजनौर के खत्रियान के रहने वाले जगदीश शरन खन्ना बताते है कि रम्मो उर्फ रम्मो गुरू का घर मुहल्ला सोतियान में रामलीला मैदान से सर्राफा बाजार जाने वाले रास्ते पर था। कत्थक कला में वे पारंगत थे।दूर −दूर तक उनका बड़ा नाम था। बिजनौर के सोती अनिल कुमार बताते हैं कि रम्मो गुरू के बेटे अशोक सहारनपुर चले गए।रम्मो गुरू के सामने ही उनका निधन हो गया। बाद में रम्मो गुरू सपरिवार बेटे के परिवार के पास सहारनपुर चले गए। वे बतातें हैं कि उनकी और उनके दोस्त विपिन महर्षि की रोज शाम को रम्मो गुरू के पास दो−तीन घंटे महफिल जमती थी।वह बताते हैं कि रम्मो गुरू में संगीत के प्रति दीवानगी थी। वे जमकर नाचने और गाते। नाचते तो काफी देर नाचते रहते। वे बताते है कि वर्धमान काँलेज के अंग्रेजी के प्रोफेसर राघवानन्द भी रम्मो गुरू के पास आते थे।
मेरठ के रहने वाले पत्रकार और बिजनौर में जागरण के ब्यूरो प्रमुख रहे प्रवीण वशिष्ठ कहते हैं कि उन्होंने अजय के जीवन काल में उनपर एक स्टोरी की थी। तब उन्होंने बताया था कि वह बिजनौर के रहने वाले हैं। उनके दादा रम्मो गुरू का अपना म्युजिक घराना होता था। वे कहते है कि फिल्मी गीतकार जावेद अख्तर फिल्मी दुनिया में आए अजय झिंगरन के बारे में कहते थे, कि यह बहुत आगे जाएगा, किंतु जल्दी ही इस दुनिया से चले गए।
अजय झिंगरन के भाई श्री राजीव झिंगरन बताते हैं कि वे सारस्वत ब्राह्मण हैं।उनके दादा रम्मो गुरू (रम्मो उस्ताद)संगीत के गुरू थे। वे प्रशिक्षित क्लासिक गायक और कत्थक डांसर थे ।संगीत और कत्थक सीखने जनपद के आसपास के व्यक्ति उनके पास आते रहते थे। उन्होंने तबला वादन पर एक पुस्तक भी लिखी।
रम्मो गुरू का जन्म बिजनौर में 16 जनवरी 1908 को बिजनौर में हुआ। निधन दस फरवरी 1995 में सहारनपुर में हुआ।
वे बताते हैं कि उनके पड़दादा केशव शरण शर्मा अपने समय के जाने −माने शास्त्रीय संगीतज्ञ थे। उनका उपनाम लल्ला पुरोहित था। उनसे उनके दादा जी रम्मो गुरू ने संगीत सीखा । दादाजी से पिता अशोक झिंगरन से गायन वादन और कत्थक सीखा।पिता का जन्म 19 मार्च 1937 को हुआ। वे अल्कोहल टैक्नालाजी के विशेषज्ञ थे। उन्होंने कई शराब बनाने वाली कंपनी में काम किया। 26 अगस्त 1989 में सहारनपुर में उनका निधन हुआ। वे भी प्रशिक्षित गायक , वादक और कत्थक नृतक थे1 पिता अशोक झिंगरन ने बिरला कॉलेज पिलानी से शिक्षा पाई।शिक्षा पाने के दौरान से ही वे कार्यक्रम करने लगे थे।
राजीव झिंगरन बताते हैं कि उनके पिता के समय में काफी लोग अपने नाम के आगे शर्मा लगाने लगे थे। पिछड़ी जाति में शामिल भी अपने को शर्मा लिखने लगे। इसीलिए पिता अशोक शर्मा अपने गौत्र झिंगरन का नाम अपने नाम के आगे लगाने लगे। तबसे परिवार के सब सदस्य अपने को झिगरन लिखने लगे।
वे सारस्त ब्राह्मण हैं।
उनके सबसे छोटे भाई अजय झिंगरन गायक ,म्युजिक डाइरेक्टर लेखक कवि और आर्टिस्ट भी थे।मुंबई में रहन वाले बिजनौर के दानिश जावेद कहते हैं कि बिजनौर जनपद का और एएमयू के साथी होने के कारण उनकी अजय ये अच्छी दोस्ती थी। जावेद अख्तर उन्हें बहुत प्यार करते थे।
अजय झिंगरन का जन्म सात नवंबर 1969 को हुआ। हृदयाघात से 18 सितंबर 2013 को मुंबई
में उनका निधन हुआ। अजय ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से साहित्य में स्नातक किया। पंजाब विश्वविद्यालय से भारतीय रंगमंच में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की।गायक सोनू निगम ने ही झिंगरन को बॉलीवुड में अपनी जगह बनाने में मदद की थी।गायक के रूप में उनके कुछ लोकप्रिय गीतों में "मन ये बावरा" ("हजारों ख्वाइशें ऐसी", 2005), "खोया खोया चांद" ("खोया खोया चांद", 2007) और "बिल्लू बार्बर" शामिल हैं।"बिल्लू बार्बर", 2009)। गीतकार के रूप में, उन्होंने "बोलो राम" (2004) जैसी फिल्मों में काम किया है। "रक्त" (2004), "पेज 3" (2005) और "फिर कभी" (2009) में भी उन्होंने संगीत दिया। 18 सितंबर, 2013 को अचानक दिल का दौरा पड़ने से समय से पहले उनकी मृत्यु हो गई।
श्री राजीव झिगरन बताते है कि उनके दादा राम शरण शर्मा, पिता अशोक झिंगरन,वह खुद राजीव झिंगरन उनका छोटा भाई संजीव झिंगरन विज्ञान के छात्र रहे हैं। इसके बावजूद ईश्वर कृपा से सभी बढिया सिंगर हैं। उनका
छोटा भाई अजय झिंगरन ने पंजाब विश्व विद्यालय पटियाला से थियेटर और कला में एम.ए. किया। उसने फिल्म गीत लेखन में अपनी जगह बनाई। उन्होंने जावेद अख्तर के साथ काम किया। शाहरूख खान की फिल्म बिल्लू में शाहरूख खान के साथ उन्होंने काम किया।उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रसिद्ध नौशाद साहब के साथ सम्मानित किया।
श्री राजीव झिंगरन से बताया कि उनसे छोटा भाई श्री संजीव झिंगरन सहारनपुर में पीजीटी टीचर है। वह शहर के एक प्रसिद्ध गायक हैं। उन्होंने बॉलीवुड में भी गाया और अपने एल्बम जारी किए। संजीव का बेटा संगीत झिंगरन 18 साल का है। वह सहारनपुर में रहकर पढ़ाई कर रहा है।फिल्मी दुनिया मुंबई में उनका सबसे छोटा भाई अजय झिंगरन रहा।
श्री राजीव झिंगरन के अनुसार उनके बच्चे भी परिवार की विरासत को संभाल रहे हैं। वह बताते हैं कि उनका बेटा शुभांकर झिगरन 23 साल एक अच्छा गायक है। शुभांकर का पंजाब विश्वविद्यालय पटियाला में एमए संगीत का पहला साल है। उनकी बेटी
, श्रुति झिंगरान( 21 साल), एक प्रतिभाशाली कथक नृत्यंगना है। वह पंजाब यूनिवर्सिटी पटियाला से बीए कथक (ऑनर्स) कर रही है। इस साल उसका फाइनल ईयर है।
श्री राजीव झिंगरन का कहना है कि पूरे परिवार का इरादा विरासत से मिली गायन वादन कला को आगे बढ़ाने का है। वे सब पूरे समर्पण भाव से इस कार्य में लगे हैं।
अशोक मधुप
Comments
Post a Comment