बाबा रामदेव के गुरु स्वामी आनंद चैतन्य उर्फ बंगाली बाबा


 बाबा रामदेव के गुरु स्वामी आनंद चैतन्य उर्फ बंगाली बाबा का 20 दिसंबर 2014 को देहावसान हो गया। शुक्रवार सुबह करीब चार बजे गंज स्थित अपने आश्रम पर उन्होंने 103 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली। वह पिछले चार साल से लकवा से पीड़ित थे। गंज में गंगाघाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया।



शिष्य भोगराज ने उन्हें मुखाग्नि दी। इस मौके पर बड़ी तादाद में बाबा के भक्त और संत मौजूद रहे। हेमराज कॉलोनी से आए बंगाली समुदाय के लोगों ने बंगाली बाबा की चिता जलने के दौरान ही गंगा तट पर भजन कीर्तन किया।
स्वामी आनंद चैतन्य करीब 47 साल पहले महात्मा विदुर कुटी से कुछ ही दूरी पर गंज में आश्रम बनाकर आ बसे थे। बंगाली बाबा को योग के साथ आयुर्वेद की अच्छी जानकारी थी। दूरदराज से लाइलाज मरीज उनके पास उपचार कराने आते थे। प्रत्येक रविवार को आश्रम में मरीजों की भीड़ रहती थी।

परिवार खत्म होने पर बंगाल से बचकर भागे थे बाबा

स्वामी आनंद चैतन्य महाराज बंगाली बाबा का पूरा परिवार पूर्वी बंगाल वर्तमान में बांग्लादेश में हुए दंगों में नेस्तनाबूद कर दिया गया था। इस दंगे में अकेले चैतन्य महाराज ही बचे थे। नानी ने चावल के बुगों में छिपाकर उनकी जान बचाई थी। इसके बाद वे भारत में आ बसे थे और योग के साथ आयुर्वेद के प्रकांड विद्वान बन बैठे।
बांग्लादेश के नौवाख्वानी  शहर के रहने वाले स्वामी आनंद चैतन्य महाराज बताते थे कि जब वे छोटे थे तो उनके यहां दंगे हो रहे थे। महात्मा गांधी शांति के लिए आए थे और उनके घर रुके थे।महात्मा गांधाी के जाने के बाद रात  में परिवार के 96 सदस्यों को दंगाइयों ने मार डाला था।

उनका वहां का सम्मानित हिंदू परिवार था। दंगों के दौरान नानी ने चावल के बुगों में उन्हें छिपा दिया था। इस कारण वह दंगाइयों के हाथ नहीं लग पाए थे। दो दिन बाद बुगों से जिंदा निकले तो एक रिश्तेदार उन्हें किसी तरह कलकत्ता ले आया और अपने पास रखा। रिश्तेदार उनके साथ नौकरों जैसा व्यवहार करने लगा। परेशान हो कर वे यहां से निकलकर हरिद्वार आ गए और आयुर्वेद की पढ़ाई की।

यहां से उनकी जिंदगी बदलनी शुरू हो गई। इसी दौरान वे बिजनौर के सांसद रतनलाल जैन के संपर्क में आ गए। सांसद उन्हें बिजनौर ले आए और गंज ले गए। इसके बाद वे गंज में बस गए और फिर कहीं नहीं गए।

20  दिसंबर2014 को  अमर उजाला में प्रकाशित मेरा लेख

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