इजहार असर
हजारो उपन्यास लिखने वाले लेखक शायर
किरतपुर से शिक्षा पूरी कर उन्होंने सन 1941 में लाहौर पहुच कर एक कपड़े की फैक्ट्री में खड्डी पर कपड़ा बुनाई के काम लग गये बाद मे जब सन 1947 में बंटवारे का फसाद शुरू हुआ तो वह लाहौर छोड़कर दिल्ली रणजीत नगर
आ गये
यह वह समय था जब भारतीय मुसलमान पाकिस्तान जाकर मुहाजिर बनना पसंद कर रहे थे इजहार असर का लाहौर छोड़कर दिल्ली में बसना एक साहसिक कदम था
उनका यह कदम निर्णायक साबित हुआ उन्होंने दिल्ली मे रह कर अपनी प्रतिभा को उभारा उनके उपन्यासों मे विषेश थे जुर्म साइंस फिक्शन एवं जासूसी 1949 में उनका नागिन उपन्यास बेस्ट साबित हुआ
जासूसी नाॅवल लिखने में उनकी तुलना इब्ने सफी से की जाती थी जबकि साइंस के क्षेत्र में इजहार असर उर्दू साहित्य में सर्वश्रेष्ठ माने जाते थे बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि इजहार असर एक शायर भी थे प्रसिद्ध शायर ताजवर नजीबाबादी के शिष्य थे ताजवर नजीबाबादी अपने समय के सबसे बड़े विद्वान थे और लाहौर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर था
इजहार असर दिल्ली में रहकर लम्बे अर्से तक स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता करते रहे ‘चिलमन’ व बानो जैसी पत्रिकाओं का सम्पादन किया इज़हार असर के जासूसी लोकप्रिय विषयों पर आधारित उपन्यासों की संख्या एक हज़ार के लगभग बताई जाती है 15 अप्रैल 2011 को उन का देहांत दिल्ली मे हुआ
एक बार जब इज़हार असर साहब के बारे मे जानकारी इकट्ठा करने का जुनून जब मेरे सर पर सवार हुआ तो मे रणजीत नगर दिल्ली उन के घर पहुच गया वहा उन के बेटे अंसार अख्तर भारत के एक जाने माने लोकप्रिय कॉमिक्स लेखक से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ
इजहार असर जी के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे देश में प्रतिभाशाली आर्टिस्ट कि कोई कदर नहीं हो पाई खैर इज़हार असर जी कि कताबे लेखनी हमेशा हमारे बीच जिंदा रहेगी।
प्रस्तुति----------तैय्यब अली
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