स्रोत नदी का उदगम बिजनौर
स्रोत नदी का उदगम बिजनौर
डीएम उमेश मिश्र बिजनौर की मालन नदी में प्राण फूंकने के प्रयास में हैं।वह अमरोहा कि सोत नदी को भूल गए। उन्होंने अमरोहा में अपनी तैनाती के दौरान इस नदी के कब्जे हटवाकर इसमें प्राण फूंकने के लिए कार्य किया थ। आज वह बिजनौर में जिलाधिकारी हैं।उन्हें यह जानना भी जरूरी है कि अमरोहा की स्रोत नदी का उदगम बिजनौर है।
अमरोहा की तत्कालीन जिलाधिकारी कंचन वर्मा ने सोत नदी की सफाई का अभियान चलाया था, लेकिन उनका तबादला हो गया। उसके बाद जिलाधिकारी उमेश मिश्र ने फिर इसकी सफाई कराई और लोगों को इस नदी से जोड़ने का अभियान चलाया। यह बरसाती नदी है।
सोत नदी का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। इस नदी को बरसाती नदी कहा जाता है। यानि अमरोहा के साथ-साथ नौगावां सादात व इससे जुड़े गांवों के बरसात का पानी समेटने वाली नदी शुरुआत में काफी बड़ी थी। वर्ष 1921 में भारी बारिश की वजह से ट्रेन के गुजरते समय इसका पुल टूट गया था और इंजन समेत दो बोगियां उसमें समा गयी थी। यह ट्रेन हादसा काफी बदनुमा भी है। इस गाड़ी की पिछली बोगी में मुल्क के मशहूर हकीम अजमल खां और उनके शागिर्द हकीम रशीद अहमद खां शिफा-उल-मुल्क भी सवार थे। इतिहासकार बताते हैं कि सोत नदी गांव पीलाकुंड (अमरोहा) से निकलती हुई अमरोहा-अतरासी मार्ग व जोया के पास हाईवे से निकलकर सम्भल होती हुई बदायूं जिले के राज नगर में अपना सफर पूरा करती है। बदायूं जिले में इसका फाट (चौड़ाई) अमरोहा और सम्भल के मुकाबले में ज्यादा चौड़ा हो जाता है। बदायूं में बड़े सरकार की दरगाह भी इसी सोत नदी के किनारे है। सन 1745 में मुगल शहंशाह मुहम्मद शाह ने रूहेला सरदार नवाब अली मुहम्मद खां (रामपुर रियासत के पहले नवाब) पर हमला किया और उन्हें गिरफ्तार कर के दिल्ली ले गए थे। रास्ते में जाते समय सोत नदी के किनारे पड़ाव किया। जो उस वक्त जोर-शोर से बह रही थी। इसके किनारे बादशाह और उनके लश्कर ने राहत का एहसास किया और खुश होकर इस छोटी सी नदी को 'यार-ए-वफादार के खिताब से नवाजा। किताब 'तारीख-ए-असगरी में इस घटना का जिक्र है। सोत नदी अमरोहा से बदायूं तक जाती है किंतु कोई यह नही जानता कि इस नदी का प्रारंभ बिजनौर से है।
झालू का आमवाला तालाब अब अपना अस्तित्व खो रहा है। अवैध कब्जों के कारण सिकुड गया। आज से लगभग 60 – 70 सात पहले बरसात में इसका पानी लगभग एक किलोमीटर दूर झालू के मुख्य बाजार तक आ जाता था।बरसात में इसका पानी यहां से निकलकर चांदपुर के सलारा तालाब में जाकर मिलता था। सिसौना में आमबाले का नाम बदल कर जौल हो गया। सलारा तालाब आगे बढकर अमरोहा तक जाता और वहां सूखा सोत में बदल जाता।
झालू के आमवाला पर कब्जे हुए।यही हालत चांदपुर के सलारा तालाब की है। अब तो यह तालाब नाला बन कर रह गया। इसकी जमीन पर कब्जे होकर पक्की काँलोनी बन गईं। क्या डीएम साहब इन दोंनों तालाब की सफाई पर ध्यान देंगेॽ
Comments
Post a Comment