नूरपुर थाने पर झंडा फहराने के एक आरोपी नारायण सिंह की जवानी

 

नूरपुर थाने पर झंडा फहराने के एक आरोपी नारायण सिंह की जवानी

सम्भवतः २६जुलाई १६४२ को जिला - काँग्रेस की बैठक में बाबू गोविन्द सहाय ने यह संकेत दिया था कि ८ अगस्त १२४२ को बम्बई में होने वाली राष्ट्रीय काँग्रेस कार्यकारणी की बैठक में करो  या मरो , अंग्रेज भारत छोड़ो का प्रस्ताव पारित होना है। हो सकता है कुछ नेता पहले या उसी दिन पकड़ लिये जाएं।  आप लोगों को भी पुलिस नौ अगस्त को पकड़‌ कर बन्द कर दें, जहाँ तक हो  गिरफ्तारी से बचना, और काम करते रहो, ताकि आन्दोलन जल्दी बंद  न हो। चलता रहे।

 मुझे , किशोरी सिंह,  और चन्द्रपाल सिंह  को भी दरोगा ने मेघराज सिंह मुखिया के मकान पा‌र बुलवाया और कहा आप लोग गिरफ्तार हो  । थाने चलो। मैंने  कहा हमारा वारंट दिखायें, दरोगा वारंट न दिखा सका ।तब हमने  उसके साथ जाने को  मना  कर दिया ।दरोगा वापस नूरपुर चता आया

 इसके बाद नूरपुर थाने पर तिरंगाधवज फहराने को प्रोग्राम बनाया । इसके लिए 16 अगस्त की तारीख  निश्चित  की गई। इस कार्यक्रम का  नूरपुर क्षेत्र में गांव− गांव घूम घूम कर प्रचार किया गया।

कार्यक्रम के एक संयोजक गोहावर के नारायण सिंह एक लिखित पत्र में इस घटना का जिक्र करते हैं कि 16 तारीख को सुबह से ही बारिश हो रही थी। मगर चारों ओर से लोग तिंरगा झंडा लिए चले आ रहे थे

 

१२ बजे तक दस हजार कार्यकर्ता जमा हो चुके थे। हमारे ताजपुर वाले  पंडित राजकुमार ने दरोगा से बहुत कहा कि हम थाने पर झन्डा लहरा कर  चले जाएंगे, मगर दरोगा नही माना।   तब हमारे नवयुवक परवीन सिंह, मुंशीराम सिंह  आदि झंडा लहराते थाने के गेट की ओर बढ़े, तभी गोली चलना प्रारंभ हो गई।परवीन सिंह की मौके पर ही मृत्यु हो गई। दूसरे नवयुवक रिक्खी सिंह जेल में जाकर मरे। मुंशीराम, नत्थू सिंह  आदि  बीस कार्यकर्ता घायल हुए।अन्य गोलियों की बौछार से तितर− बितर हो गए।मैं और किशोरी सिंह अपने गांव के नत्थू सिंह को उठाकर गांव ले गए।छह  सिंतबर तक  थाने का कोई  भी व्यक्ति गुहावर न जा सका।छह सिंतबर को गोहावर गांव बागी घोषित कर दिया गया। इसके बाद पुलिस ने हमारे घरों को लूटा।

मेरे, किशोरी  सिंह और  चन्द्रपाल सिंह के घरों पर मवेशी , अनाज चारपाई और सारा सामान पुलिस ले गई। यहां तक की चारपाई पर सो रहे किशोरी के  

नन्हे बच्चे को पुलिस ने ऐसा बट मारा कि उसकी मौत हो गई ।– धीरे सभी कार्यकर्ता गिरफ्तार हो गए। मुणे भी 16 जून 1943 को गिरफ्तार कर लिया गया। 32 कार्यकर्ताओं  पर केस चला।मजिस्ट्रेट ने दो साल की सजा सुनाई।जज ने 19 दिसंबर 1943 को  16 कार्यकर्ता रिहाकर दिए और 16 की सजा को दो− दो वर्ष कर दिया।मैं भी सजा में रहा क्योकि मैंने एक इश्तहार मुरादाबाद जाकर छपवा दिया था− आम जनता को न सताओ। नूरपुर में जो किया हमने किया है।14 अप्रेल 1944 को  हाईकोर्ट ने सभी को रिहाकर दिया । सभी कार्यकर्ता और नेता1945 तक छोड़े गए।  

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