मोदी के मन की बात कार्यक्रम की सोत नदी झालू से निकलती है

मन की बात कार्यक्रम की सोत नदी झालू से निकलती है अशोक मधुप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल रविवार को मन की बात कार्यक्रम में संभल जिले की जिस सोत नदी का जिक्र किया है,उसका उद्गम बिजनौर जनपद के झालू का आमवाला तालाब है। प्रधानमंत्री ने कहा कि अमरोहा से शुरू होकर संभल होते हुए बदायूं तक बहने वाली नदी क्षेत्र के लिए जीवनदायिनी के रूप में जानी जाती थी।प्रधानमंत्री जी को ये जानकारी नही की उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद के कस्बा झालू का आमवाला तालाब सिसौना होते चांदपुर जाकर वहां के सलारा तालाब में मिलता है।यह ही सलारा तालाब अमरोहा में जाकर सोत नदी का रूप ले लेता है।आज आमवाला के साथ सलारा तालाब पर भी कब्जे हो गए। झालू कस्बे कस्बे के पूरब में आम वाला जोहड़ बहता है।इसके कनारे कभी पंजाबे होते थे। इन पंजावों में ईंट बनताऔर पकाई जाती थीं।अब तो इस पर काफी कब्जे हो गए। लोगों ने पाटकर इसकी भूमि पर मकान बना लिए।कभी यह बहुत बड़ा होता था।यह यहां से निकलकर चांदपुर के सलारा तालाब में जाकर मिलता था। सलारा तालाब आगे बढकर अमरोहा तक जाता और वहां सूखा सोत में बदल जाता। झालू के पूर्व चेयरमैन डा ब्रज भूषण के कनाडा़ में बस गए पुत्र देवेंद्र गुप्ता कहते हैं कि उनके समय में बरसात में आमवाले जोहड़े का पानी कस्बे के मुख्य बाजार में आ जाता था।मुख्य बाजार और तालाब की आज दूरी एक किलो मीटर के आसपास होगी। यह तालाब सिसौना गांव में पंहुचकर जौल हो जाता है। जौल सिसौना की बरसाती नदी है।ये आगे जाकर चांदपुर के सलारा तालाब में मिल जाता है। कभी चांदपुर का सलारा तालाब बहुत बड़ा था।अब तो यह नाला बन कर रह गया। इसकी जमीन पर कब्जे होकर पक्की काँलोनी बन गईं। यह सालारा तालाब आगे जाकर अमरोहा की प्रसिद्ध नदी सोत में मिलता है। इसी को स्त्रोत भी कहते हैं। अमरोहा सोत नदी का इतिहास अपने-आप में विज्ञान की खोज का विषय है। इसकी विशालता का अन्दाजा इससे लगाया जा सकता है, कि यह गंगा के बाद दूसरी सबसे बड़ी जनपदीय नदी है।इस नदी के बारे मे कहा जाता है कि एक बार भीषण युद्ध के दौरान मुस्लिम सैनिक प्यास बुझाने के लिए सोत नदी के किनारे आए थे। उस समय प्यास बुझाने के लिए उनके पास कोई अन्य स्रोत नही था और सैनिक प्यास के कारण मरणासन्न हो गए थे, लेकिन सोत नदी ने सभी सैनिको की प्यास बुझाई, इसी कारण सैनिको ने इसे “यार-ए-वफादार” नाम दिया था। इस नदी के किनारे हजरत सुल्तान उल आरफीन की सुप्रसिद्ध मज़ार भी है। सोत नदी की एक खास बात और है कि यह कहीं भी सौ मीटर तक भी सीधी नही चलती। इसलिए इसे सांपू नदी भी कहा जाता है।मुंशी मुन्नू लाल मुन्सरिम के “जग्राफ़िया ए मुरादाबाद” (1872) के मुताबिक़ सोत नदी का उद्गम जगह फैज़ुल्लाह गंज है ,जबकि तारीख़ ए असगरी (1889) के मुताबिक़ इसका उद्गम होने की जगह गांव पीलाकुंड है, जबकि सच्चाई कुछ और है।ये नदी अमरोहा अतरासी रोड( जहां 6 मार्च 1988 को किसानों का 18 दिन तक सत्याग्रह आंदोलन चला था) , फिर जोया के पास हाइवे से निकल कर संभल – बिलारी होती हुई बदायूं ज़िले के राजनगर के पास इसका सफर पूरा हो जाता है। बदायूं ज़िले में इसका फाट अमरोहा और संभल के मुक़ाबले में ज़्यादा चौड़ा हो जाता है। कहा जाता है औपनिवेशिक काल सन् 1921 में 25 जून को 1921 को भारी बारिश से पानी का लेवल बढ़ने की वजह से पुल टूट गया था। स्थानीय निवासी बताते हैं यह पुल बेहद कमजोर था जिसके कारण मुरादाबाद से औद्योगिक नगरी गजरौला की तरफ जा रही पैसेंजर के कई डिब्बे, इंजन सहित नदी में समा गए थे। इस दुर्घटना में लगभग 45 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। बताया जाता है कि इस ट्रेन की पिछली बोगी में हिंदुस्तान के मशहूर हकीम मसीह उल मुल्क हकीम अजमल खां साहब और उनके शागिर्द हकीम रशीद अहमद खां अमरोहवी शिफा उल मुल्क भी थे। दरअसल ये एक बरसाती नदी है। किसी दौर में ये अमरोहा के इलाक़े में खूब बहती थी लेकिन अब कहीं कहीं थोड़ा थोड़ा पानी दिखाई देता है। बदायूं में इसमें अब भी पानी बाक़ी रहता है। बड़ी सरकार हज़रत अबू बक्र मुए ताब का मज़ार बदायूं में सोत के किनारे है। 1745 में मुग़ल शहंशाह मुहम्मद शाह (1719-1748) रूहेला सरदार नवाब अली मुहम्मद खां (रामपुर के पहले नवाब ) जब उनकी राजधानी आँवला में थी।उनकी बढ़ती हुई ताक़त को देख कर लखनऊ के नवाब सफदर जंग ने जो उस वक़्त दिल्ली में रह रहे थे बादशाह को अली मुहम्मद खान के खिलाफ उकसाया था। बादशाह ने शाही लश्कर के साथ अली मुहम्मद खाँ पर हमला किया और उन्हें गिरफ्तार कर के दिल्ली ले गया(हयात ए हाफिज़ रहमत खां, अल्ताफ बरेलवी, सफ़ा 63)रास्ते में आते −जाते बादशाह ने सोत नदी के किनारे पड़ाव किया जो उस वक़्त ज़ोर शोर से बह रही थी और उसके दोनों तरफ़ खुशनुमा हरा भरा माहौल था। इसके किनारे बादशाह और उसके लश्कर ने राहत का एहसास किया और ख़ुश होकर इस छोटी सी नदी को यार ए वफादार के खिताब से नवाज़ा। सन् 2019 में संभल जिले की सोत नदी में पांच दशक बाद पानी आया तो किसानों के चेहरे खिल उठे। क्योंकि भू-जल का स्तर सुधरने के आसार थे। साथ ही जरूरत पड़ने पर सिंचाईं के लिए पानी भी मिल सकता है। अमरोहा जिले से संभल जिले में प्रवेश करने वाली सोत का जिले में 58 किलोमीटर हिस्सा है। नदी की जमीन पर तमाम लोगों ने अवैध कब्जे कर लिए। इससे नदी सूख गई और विलुप्त होने लगी। अब इसे पाट कर जगह जगह अवैध रूप खेती की जा रही है। कई साल पहले ज़िलाधिकारी ऋतु माहेश्वरी ने सोत की सफाई का अभियान चलाया था लेकिन उनका ट्रांसफर हो गया। बिजनौर के पूर्व ज़िलाधिकारी उमेश मिश्र ने अपने अमरोहा के कार्यकाल में फिर इसकी सफाई का बीड़ा उठाया । इसमें काफी काम हो भी गया। अशोक मधुप (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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