गंज, दारानगर एवं जहानाबाद
गंज, दारानगर एवं जहानाबाद महाभारत काल के क्षेत्र रहे
हैं ।
दारानगर के पास विदुरकुटी है। यहां हस्तिनापुर के
महामात्य विदुर का निवास था। यही भगवान कृष्ण
ने दुर्योधन की मेवा त्याग कर विदुर के यहां साग खाया था।
विदुर महाभारत
के युद्ध में विधवा हुई महिलाओं को लेकर यहां आ गए थे। विदुरकुटी के पीछे
उन्होंने इन महिलाओं को बसाया था। महिलाओं को दारा भी कहा जाता है। जहां महिलाओं
को बसाया गया। उस जगह का नाम दारानगर हुआ।
आज दारानगर की प्राचीन बिल्डिंग में एक बिल्डिंग के
द्वार के अवशेष मौजूद थे। इसे सराय कहा जाता है। यहां छोटा सा मदरसा चल रहा है।
द्वार के बाद अंदर काफी बड़ा बराण्डा है। ब्रांउडी के दोनों साइड में तिदरी है। तीदरी
की साइड से जीना है। जीने के द्वार छोटे हैं। इनसे झुककर जाना पड़ता है।
इसके ऊपर एक कोठरी है, जो मुख्य द्वार के बरांडे में खुलती है।
सरकशे बिजनौर में सर सैयद लिखते हैं कि नवाब नजीबुदौला
ने दारानगर में मदरसा, मस्जिद और कुआ
बनवाया था।संभावतः यह वही जगह है।कुआ अब
बंद हो गया।
सर सैयद साहब की पुस्तक सर सरकशे बिजनौर की कॉपी मास्टर
शराफत हुसैन साहब को यहीं से मिली थी।
स्वामी सुखानंद जी ने चार अगस्त 1993 को एक
साक्षात्कार में बताया कि गंज का सबसे पुराना आश्रम विश्नोई आश्रम है । केवलानंद
जी से पूर्व उनके आश्रम में स्वामी दरियाब वीर भी रहते थे। इस आश्रम के बाहर
साइड में दरियाव वीर के नाम पर आज भी गौशाला स्थित है। स्वामी केवलांनंद का 50 वर्ष की आयु
में हृदयाघात से निधन हो गया। साक्षात्कार के समय स्वामी सुखानन्द की आयु पचास वर्ष के
आसपास थी।
गजं का नाम कागजों में आस्किन गंज है। बताया जाता है कि
तत्कालीन कलेक्टर आसकीन के नाम पर यह नाम
रखा गया।
गंज किसी समय व्यापार का बड़ा केंद्र था और मंडी थी।
व्यापार के केंद्र को पहले गंज कहा जाता था।पहले गंगा में जहाज चलते थे।उन्हीं के
द्वारा व्यापार होता था। गंज के आसपास के बागों में गोदाम बने थे ।यहां जहाजों से
आने जाने वाला सामान रखा जाता था।
यहां गंगा के घाट पर कई पुरानी धर्मशालाए हैं। बताया
जाता है कि इन धर्मशालाओं में व्यापारी
आकर टिकते थे।
1990 में एक व्यक्ति ने इस पत्रकार को बताया कि उसने लगभग 50 साल पहले गंगा में चलते जहाज देखे हैं। रुड़की नहर बनने और ट्रेन चलने के कारण
जल यातायात पर पड़ा प्रभाव पड़ा। गंगा में जहाज चलने बंद हो गए। गन्ज से इलाहाबाद
और कानपुर के लिए व्यापार होता था। इस पत्रकार से जहाज चलने की बात स्वामी सुखानंद
ने भी स्वीकार की ।
व्यापार खत्म होने और गंज में दो-तीन बार डकैती और लूट
होने के कारण यहां के व्यापारी और संपन्न लोग बस्ती छोड़कर
जाने लगे। एक बार तो ये बस्ती पूरी
उजड़ गई, पर धीरे-धीरे बसने लगी है।
गंज में आज भी लखोरी ईंट बने बड़े −बड़े मकान इसकी पुरानी भव्यता बताते हैं।गंज में पहले
थाना था। थाने के सामने लोहे का कारखाना था और कोल्हू ढ़लते थे।
यहां विदुरकुटी के पास गंज मार्ग पर एक कब्रिस्तान है। यहां के निवासी भाजपा नेता बालेश्वर अग्रवाल ने बताया कि देश के आजाद होने के पूर्व इस कब्रिस्तान में कुछ अंग्रेजों की कब्र थी। आजादी के बाद लोगों ने इस कब्र को उखाड़ दिया था।
जाहनाबाद को शाहजहां ने आबाद कराया। यहां गंगाके किनारे शांाहजहां की बनवाई हुई एक मशजिद भाी है। यह मशजिद 1920 की बाढ़ में शहीद हो गई।इस मशजिद के बार मीनारों के टुकड़े आज भी मौजूद हैं।इस मशजिद में झामें की ईंट लगी हैं।अब इसकी जगह नई मशजिद बन गई।जहानाबाद से पूर्व इस गांव का नाम गोवर्धनपुर था।
मशजिद के पास इन्हीं ईंट का स्नान का एक घाट था। अब गंगा यहां से कई किलोमीटर दूर चली गई।
जहांनाबाद के जंगल के गांव के पूरब के रास्ते में लगभग चार फर्लांग दूर रूपसी नाम काएक कुआ है। माना जाता है कि यह ऋषि वाला कुआ होगा। धीरे− धीरे उच्चारण में बदल कर यह रूपसी वाला कुआ हो गया।इस कुंए से पानी निकालने के लिए गिर्री में देापत्थर लगे हैं।िगर्री में लगाने के लिए पत्थरों में छेद किए गए हैं।कुंए के फर्श पर कपड़े धोने के लिए एक पत्थर की सिल भी लगी हेै।
जहानाबाद गांव से पूरब की ओर निकलते ही गंधाी वाला कुआ सड़क के बांई ओर है। लखाेरी ईंट से बने इस कुंए में एक पत्थर भी लगा है। पत्थर पर क्या लिखा है, यह पठनीय नहीं हैं।गांव के शिक्ष अब्कदुल वासे साहब का मानना है कि यहां कभी गंधीं सुंगधा (इत्र) काबाजार रहा होगा।
नौलखा के पास सड़क के दांई ओर भाी पुरानी झामें की ईंट का एक कुआ था। इस कुए को खेत मालिक ने अब बंद कर दिया है।
नौलखा का मुख़य द्वार सुरक्षित है।देखने में लगता है कि यह कभी किला होगा। किले की कहीं कहीं दीवार अब भी मौजूद है।दीवार की ऊंचाई लगभग पांच फिट और मोटाई दाे सवा दो फिट रही होगी।
मुखय द्वार के दोनों और बाहर कुर्सी बनी है।इसका हिस्साएक मीटर होगा।द्वार पर अब गेट तो नही किंतु कभी गेट था। उसके निशान अब भी मौजूद हैं।इसके आगे छोटा सा बरांडा है।आगे दोनों साइड में कमरे बने हैं।द्वार नकाशाीदार हैं किंतु गेट नही।इसके पश्चिम की दोनों साइड में गहरे कमरे बने हैं।इसमें चिमगाइडों ने अपनाबसेरे बनारखा है।इनकी बींट इन कमरों में इतनी भारी है कि वह फर्श की बराबरी तक आ गईं हैं।इस द्वार के अंदर की और दक्षिण साइड से जीना है। जीने की चौखट पर लाल पत्थर लगा है।पैंडियों के बाद ऊपर जाने के लिए छोटे− छोटे द्वार बने हैं।इन द्वार में झुककर प्रवेश किया जा सकता है ।गेट के चारों ओर खिडकिंया खुली हुई हैं।तथा निशानालगाने के लिए इसमें जहग जगह छेद बने हैं।
यह द्वार एक ऊंचाई तक झामें की ईंट से बना है।इसके ऊपर लखाेरी ईट की चिनाई है।
द्वार के दक्षिण में भाी एक कोठरी बनी है1 इसकी चौखट भाी लाल पत्थर की बनी है।
चार जून 1993 को जब ये पत्रकार यहां पहुंचा तो द्वार की पुताई चल रही थी।
मुख द्वार से अंदर चलने पर तीन मकबरें हैं1सर्व प्रथाम नवाज शुजात अली का भव्य मकबरा है।मकबरे तक पंहुचने के लिए दायी ओर से पत्थर की शिलाओं की पैड़ियाबनी हुई हैं1 इनके नीचे खाली स्थान रखा गयाहै। मकबरे के चारों ओर पत्थर बिछा है।ऊपर गुंबद के बाहर चबेतरे परलाल पत्थर बिछा है।मकबरे और गुंबद मे ंशानदार नक्काशाी की गई हे।अंदरअरबी में कुरान शरीफ की आयतें और बाहर फारसी में कुछ लिखा है।गंबद के नीचे संगमरसे बनी कब्र है। मार्बल ही फर्श में बिछा है।गुंबद में दो फिट तक चारों ओर जाली लगी हुई हे। गुंबदमें ऊपर से लाहे की चेन लटकी हुई है। कहा जाता है कि ये चेन सोने की होथी थी किंतु इसे चोर काटकर ले गए। तब से ये बची चेन लोहे की बन गई।मकबरे के उत्तर में छोटी लगभग चार फिट ऊंची मीनार है। ये दियारखने के लिए इस्तमाल होती है। लोग कहते हैं कि यह मीनार वह चोर है जों जंजीर काटकर भागने के दौरान पत्थर हो गयाा।मकबरे पर पैड़ियों से चढने के बादतीन कब्र बराबर बराबर में बनी हुई हैं। गुंबद के पूर्व के भाग में भाी एक कब्र है।मकबरे के बांए भाग में फर्श में द्वार की तरह के चार पत्थर लगे हैं1और ऐसा लगता है कि ये कभी द्वर बने होंगे।कब्र के पर के भाग में फर्श चौकों को बना है।इसे देखने से ऐसा लगात है कि ये बाद में बना होगा। चबूतरे के बाहर जाली जैसी बांउड्री बनी होने के निशान भी मौजूद हैं।मकबरे में चढने के बनी पैड़ियों के दांई साइड में भी कब्र बनी है।इस पर अब पेड़ उग आए हैं। यह कब्र कुछ क्षतिग्रस्त भी हो गई है।
इस मकबरे के कुछ पूर्व में
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