खारी महर्षि परिवार की स्टेट
खारी महर्षि परिवार
की स्टेट
खारी परिवार की अखिला
शर्मा उर्फ बिन्नी के अनुसार उनका परिवार सूर्यध्वज ब्राह्मण परिवार है।इस
गोत्र के ब्राह्मण मुंबई, कोटा,जयपुर, भारतपुर ,अलवर और दिल्ली आदि शहरों में बसतें
हैं।अधिकतर ब्राह्मण पुजारी और वेदपाठी होतें हैं।दान दक्षिणा लेते हैं।सूर्यध्वज
ब्राह्मण इनसे अलग हैं।इनके पास संपत्ति
है।इन्हें इनके पिता कृष्ण महर्षि ने बताया कि जमीदारी के दस्तावेज उर्दू फारसी
में तांबे के पत्र पर लिखे थे। ये जहांगीर के समय के बताए जातें हैं। किसी दूर के
रिश्तेदार ने रूपयों के लालच में इन्हें बेच दिया।
किस्सा है कि अकबर का काफिला इधर से गुजर रहा था।
काफिले के साथ हमारे परिवार के पूर्वज और उनकी पत्नी भी थी। काफिले के साथ की महिला ने
खारी के आसपास बच्चे को जन्म दिया।।इस
पर प्रसन्न हो अकबर से 56 गांव का पूरा कस्बा उनके पूर्वज के नाम कर दिया1इस
कस्बे को खारी नाम दिया।फारसी में जिस कपड़े या सूप में नवजात बच्चे को रखतें हैं,उसे
खार कहते हैं। इसी खार से इस जगह का नाम
खारी हुआ। खारी में इस परिवार के पूर्वजों का महल भी है।
1915 मार्च में शायद चार मार्च का सुलताना के गिरोह
ने उनके यहां डांका डाला। लेखिका कहती हैं कि उनकी कस्तुरी बुआ बहुत ही सुंदर थीं1गला
शानदार था। गाती बहुत अच्छा थीं।शादी के कार्यक्रम में उन्हें गाता देख कार्यक्रम
में मौजूद डोमनी −डोमन ने उसकी सुलताना डाकू से प्रशंसा कर दी। सुलताना ने गिरोह
के भूरे को कस्तूरी के अपहरण की जिम्मेदारी सौंप दी।
इस समय घर में कोई
कार्यक्रम था।डाकुओं ने महल के बाहर इश्तहार
लगा दिया। इस पर लिखा था। डाका डालेंगे और उनकी बेटी को उठाकर लें जांएगे।दादा जी छेदी
सिंह ने इश्तहार की चिंता नही की।क्योंकि महल के दरवाजे बहुत मजबूत थे।
चार मई 1915 की रात
में 30− 40 डांकू आए1दरवाजा नहीं
टूटा।पीछे के छोटे दरवाजे से वे अंदर आ गए।
दादी ने कस्तूरी को
बहुत बचाना चाहा। डाकुओं का जमकर विरोध किया1 इस पर डकैतों ने उन्हें गोली मार दी। बुआ कस्तूरी
को उठाकर ले गए। इसमें सुबह के चार बज गए थे। गांव में जाग हो गई। कस्तूरी के
उठाकर ले जाने की बात पर गांव वालों ने डकैतों का पीछा किया। गांव वालों को पीछा करते
देख उन्होंने छोइया के पास बुआ कस्तूरी को
गोली मारकर छोइया में फेंक दिया।
गांव वाले घायल बुआ को ले आए।इसकी जान बच गई।
इसी परिवार के
प्रशांत महर्षि कहते हैं कि वे लोग कश्मीर के रहने वाले हैं। खारी जब आए तो यहां
अपनी सत्ती रखीं। सत्ती पर समी के पेड़ लगाए। समी राजस्थान में पाया जाता है1 ये
पेड़ लगभग पांच सौ साल पुराने हैं।
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