जारी है संस्कृत शिक्षा की अलख जगाने की कवायद
जारी है संस्कृत शिक्षा की अलख जगाने की कवायद
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अशोक मधुप
बिजनौर जनपद ऋषि −मुनियों की भूमि रहा है। कभी इसमें बड़े −बड़े विद्या केंद्र होते थे। गुरूकुल थे।संस्कृत विद्यालय थे, किंतु आधुनिकता की दौड़ में यह सब सिमट गया।
इसके बावजूद जनपद मे आज भी दो बालिका गुरूकुल और दो संस्कृत विद्यालय चल रहे हैं।
भारत का सबसे पुराना उच्च शिक्षा का केंद्र गुरूकुल (कण्व आश्रम) गंगा और मालन के पट पर था। इस गुरूकुल का समय महाभारत काल से पहले का है। जिला गजेटियर के अनुसार कण्व ऋषि इस गुरूकुल के कुलपति थे। भारत वर्ष का नाम देने वाले पुत्र की जननी शकुंतला इसी कण्व ऋषि के आश्रम में रहकर पली बढीं। यही हस्तिनापुर के महाराज दुष्यंत से उनका प्रेम परवान चढ़ा। दुष्यंत के न पहचानने पर वह मां के साथ ऋषि कश्यप के आश्रम में आ गईं। सुहाहेड़ी निवासी सेठ जय नारायण सिंह अन्य ग्रामवासियों के अनुसार यह आश्रम सुहाहेड़ी के पास कहीं मालन के तट पर था ।यहीं देवलोक से लौटने महाराज दुष्यंत को शेर के दांत गिनते मिले किशोर की पहचान भरत के रूप में हुई। इसी भरत ने नाम पर देश का नाम भारत वर्ष हुआ।
महाभारत काल में सेंधवार में गुरू द्रोणाचार्य का सैन्य प्रशिक्षण केंद्र था। यहीं हस्तिनापुर राज्य का सैन्य हैड क्वार्टर था। गुरू द्रोणाचार्य के आश्रम में ही रहकर कौरव और पांडव ने युद्ध कला में निपुणता प्राप्त की।ऋषि भारद्वाज का आश्रम गंगाद्वार( हरिद्वार)के निकट था। बिजनौर जिला गजेटियर अनुसार यहीं रहकर भारद्वाज ऋषि के पुत्र द्रोण और द्रुपद ने शिक्षा ग्रहणकी। यह स्थल आज हरिद्वार में चला गया।
गुप्ता काल और हर्षवर्धन के समय में मंडावर(मतिपुर) कभी बोद्धकालीन शिक्षा का बड़ा केद्र था।( चीनी यात्री ह्वेन त्सुंग ( हवेन सांग)के अनुसार, उस समय मतिपुर (आधुनिक मंडावर) अस्तित्व में था । यहां दस के आसपास बोद्ध मठ थे।यहां बोद्ध धर्म की हीनयान शाखा का बड़ा शिक्षा केंद्र था। इसमें आठ सौ युवक शिक्षा ग्रहण करते थे। इसी मठ में रहकर उन ह्वेन सांग ने छह माह शिक्षा प्राप्त की।
1801 में बिजनौर अंग्रेजों के नियंत्रण में आया। 1845 के आंकड़ों के अनुसार जनपद में एक मात्र संस्कृत पाठशाला नहटौर में थी। इस पाठशाला के बारे में कोई ज्यादा जानकारी नहीं मिलती। नहटौरवासियों के अनुसार ये पाठशाला हाथी वाले मंदिर में चलती थी। देश के प्रसिद्ध व्यंगकार रविद्र नाथ त्यागी ने इसमें शिक्षा पाई। बाद में ये कब बंद हुई, ये पता नही चलता।
गंज में श्री निगमागम संस्कृत पाठशाला 1934 से 2010 तक चली। इस संस्था के आज के प्रबंधक पूर्व राज्यमंत्री स्वामी ओमवेश के अनुसार सरकार की कोई सहायता न मिलने, आचार्यों के वेतन की व्यवस्था न होने के कारण संस्कृत महाविद्यालय बंद हो गए।
बिजनौर में रामलीला मैदान से पहले डा मदन मोहन के चौराहे पर बिजनौर के सोतियों ने परिवार ने संस्कृत पाठशाला चलाई थी। बाद में यह बंद हो। मंडावर बाजार कला में पूरब की ओर बच्चों को निशुल्क संस्कृत आदि पढ़ाने के लिए श्री राम पाठशाला बनी थी । आज श्री राम पाठशाला का भवन भी गिरा दिया गया है । हालाकि ईंटों का ढेर अभी इसकी विशालता की दर्शाता हैं । बिजनौर में पंचमुखी हनुमान मंदिर के समीप भी संस्कृत पाठशाला चलती थी।
मंगला प्रसाद पुरुस्कार प्राप्त साहित्यकार, समीक्षक, लेखक व सम्पादक पंडित पदम सिंह शर्मा ने राजा का ताजपुर में स्थित संस्कृत की शिक्षा प्रप्त की थी। बताया जाता है कि इस पाठशालाकी जगह अब सरकारी प्राथमिक विद्यालय है। हल्दौर में भी संस्कृत पाठशाला थी।
आज बिजनौर में बैराज मार्ग पर और नजीबाबाद क्षेत्र में बालिकाओं के अलग −अलग गुरूकुल संचालित है। पावटी में भी श्री महावीर शर्मा द्वार संस्कृत पाठशाला चलाई जा रही है।
चांदपुर की बिहारी संस्कृत पाठशाला इस समय की जनपद की सबसे पुरानी पाठशाला है। लेखक के पिता ओम प्रकाश शर्मा इसमें अध्ययन कर चुके हैं।
बिहारी संस्कृत पाठशाला के संस्थापक बिहारी लाला चांदपुर के मुहल्ला कटरमल के रहने वाले थे।इनके पिता का नाम पंडित गंगाराम था।बिहारी लाल का जन्म 1852 को हुआ। ये एक जमींदार परिवार से थे। आपने दो शादी कीं किंतु कोई बच्चा नही हुआ।मित्रों की सलाह पर आपने अपने आवास प्रांगण में महादेव और भगवान कृष्ण का मंदिर बनवाया। इन्होंने बिहारी संस्कृत पाठशाला को अपनी सारी 541 बिघे कृषि भूमि और अपनी चांदपुर की आवासीय भूमिदान की।पाठशाला शुरू तो हो गई किंतु 25 दिसंबर 1920 को संस्कृत पाठशाला की विधिवत रूप से स्थापना हुई।19 मई 1932 को इस विद्यालय को बनारस संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से परीक्षा संचालन की मान्यता मिल गई।1982 में चांदपुर के प्रसिद्ध वैद्य राम कुमार शर्मा को बिहारी जी के नाम पर स्थित संस्कृत पाठशाला के संचालन के लिए प्रबंधक बनाया गया।
सन 2002 में माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद का गठन होने पर कक्षा छह से 12 तक की मान्यता मिल गई।संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी द्वारा यहां शास्त्री बीए और आचार्य एमए की परीक्षाओं का संचालन किया जा रहा है।विद्यालय को राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान से अनुदान मिलता है।विद्यालय में 16 कक्षा कक्ष के अलावा पुस्तकालय, कंप्यूटर,स्टाफ और कार्यालय के लिए अलग से एक −एक कक्ष हैं। छात्रों के आवास हेतु दस कक्ष और स्टाफ के लिए पर्याप्त कक्ष मौजूद हैं। विद्यालय प्रांगण में शिवालय , भगवान विष्णु और भगवान परशुराम का मंदिर भी है।इस समय जनपद के प्रसिद्ध होम्यो चिकित्सक बिजनौर में चिकित्सा कार्य कर रहे डा कपिल शर्मा इस पठशाला के प्रबंधक हैं। बिहारी लाल के बारे में संस्था के पास आज न कोई विशेष जानारी उपलब्ध है। नहीं उनका कोई चित्र।
बिहारी संस्कृत पाठशाला के प्रबंधक डा कपिल शर्मा स्व. पंडित श्रीराम शर्मा के हवाले से बताते हैं कि प्लेग महामारी के समय बिहारी संस्कृत पाठशाला के प्राध्यापक बिजनौर निवासी कोई सोती जी थे।उस महामारी काल में वे बिहारी संस्कृत पाठशाला के विद्यार्थियों को बिजनौर ले आए। उस समय कुछ विद्यार्थी स्व. पंडित राजराम शास्त्री के आवास प्रांगण में भी ठहरे थे और कुछ मुहल्ला सौतियान में ।स्वर्गीय श्रीराम शर्मा के अनुसार दो साल तक पाठशाला के विद्यार्थियों ने बिजनौर में ही रहकर अध्ययन किया।
अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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