दो प्रधानाध्यापकों ने छात्रों के हाथों जान गंवाई
दो प्रधानाध्यापकों ने छात्रों के हाथों जान गंवाई
−एक प्रधानाचार्य पर हुआ प्राणाघातक हमला
अशोक मधुप
शिक्षक छात्रों का भविष्य बनाते हैं।उनके दोष खत्म करके उनमें अच्छे संस्कार देते हैं। इसीलिए छात्र गुरू का सम्मान करते हैं। उनके चरण पूजते हैं। कुछ छात्र कई बार गुरूओं पर हमलावर भी हो जाते हैं। बिजनौर के राजकीय इंटर काँलेज के दो प्रधानाचार्यों की मौत उनके छात्रों के हाथों ही हुई।एक और प्रधानाचार्य पर उनके छात्र ने स्कूल छोड़ने के 15 – 16 साल बाद हमला किया। वे गंभीर रूप से घायल हुए किंतु उनके प्राण बच गए।
1921 में देश में अंग्रेजों के विरूद्ध असहयोग आंदोलन चल रहा था। राजकीय इंटर कालेज बिजनौर की वर्ष दो हजार का वार्षिक पत्रिका संकल्प के अनुसार छात्र भी कुछ उग्र हो गये थे। विद्यालय में अनुशासन बहुत सख्त था। प्रतिदिन पीटी और सायंकाल में खेल अनिवार्य था। फूलसिंह नामक छात्र विद्यालय के व्यायाम शिक्षक से नाराज था। वार्षिक परीक्षांए चल रही थी।पीटीआई महोदय कक्षा सात के कक्ष निरीक्षक थे।उर्दू का पेपर था। प्रधानाध्यापक श्री कृपाराम जी पेपर में कुछ संशोधन करा रहे थे। फूलसिंह अपने पिता की लाइसेंसी बन्दूक लेकर कक्ष में आ गया। व्यायाम शिक्षक पर निशाना साधकर उसने जैसे ही फायर किया कि व्यायाम शिक्षक को बचाने के लिए प्रधानाचार्य कृपाराम उनके सामने आ गए। उन्होंने फूल सिंह को कक्षा में प्रवेश करते देख लिया था।फलस्वरूप व्यायाम शिक्षक तो बच गए पर प्रधानाचार्य को गोली लग गई। इससे उनकी मौत हो गई। घटना के समय काँलेज के छात्र रहे और अब के शिक्षक श्री सतीश चन्द्र सक्सेना ने बताया कि उस समय कक्षा सात के परीक्षा चल रही थीं। प्रधानाध्यापक कृपाराम जी उर्दू पढ़ाते थे। वे पेपर में करेक्शन करा रहे थे।जिस शेर में करेक्शन होना था। वह कुछ इस तरह था−मुझको दयारे गैर में मारा वतन से दूर। वास्तव में उनकी मौत भी वतन से दूर हुई। लेख से यह पता नही चलता कि प्रधानाचार्य कृपाराम कहां के रहने वाले थे।छात्र फूलसिंह का इस हत्या के मामले में क्या हुआॽ
सन उन्नीस सौ बयालिस में चरणदास मित्तल गवर्नमेंट कॉलेज के प्रधानाध्यापक होते थे। वे अनुशासन के बड़े सख्त थे। होली का अवसर था। विद्यालय की लिस्ट में होली से पहले पड़ने वाली रंग की एकादशी का अवकाश नही था।कुछ छात्र एकादशी के अवकाश कराना चाहते थे। छात्र मित्तल साहब से मिले। मित्तल साहब ने कहा कि विद्यालय की अवकाश सूची में रंग की इकादशी के अवकाश की व्यवस्था नही है। अतः अवकाश करना संभव नहीं है। छात्र छुट्टी की जिद कर बैठे । उन्होंने छोटे छात्रों को कक्षाओं से भगा दिया। छुट्टी चाहने वाले छात्र स्कूल के गेट पर लेट गए। श्री मित्तल साहब जब आए छात्रों ने उन्हें स्कूल में प्रवेश नहीं करने दिया। कहा कि अगर आप स्कूल में जा रहे हैं तो हमारी छाती से होकर जाएंगे। श्री मित्तल दृढ़ निश्चयी और कठोर अनुशासन के व्यक्ति थे। उन्होंने अपनी साइकिल उठाई और छात्रों के आसपास से निकलते स्कूल में प्रवेश कर गए। अपने कार्यालय में जाकर उन्होंने गेट पर बैठने वाले सारे 11 छात्रों को निलंबित कर दिया। इन छात्रों में अधिकांश हिंदू छात्र थे। इनके साथ मुस्लिम छात्र जमील अहमद पुत्र शब्बीर हुसैन (मुख्तार )भी था। शहर के प्रमुख लोगों के अनुरोध पर जमील और दो अन्य हिंदू छात्रों को छोड़कर शेष सभी आठ छात्रों का निलंबन रद्द कर दिया गया ।
कालेज की पत्रिका के अनुसार मित्तल साहब वर्तमान जजी (पूर्व काशीपुर हाउस) के सामने एक बंगले में रहते थे ।लोग कहते हैं कि जमील उनके घर पहुंचा और उनकी बहुत अनुनय −विनय की। कहा कि उनका और उनके साथियों का निलंबन रद्द कर दिया जाए ।बताते हैं उसने कहा कि हिंदू दोस्त बहुत बुद्धिमान हैं,उनके निलंबन से उनका कैरियर बिगड़ जाएगा । वे चाहें उसका निलंबर रद्द करें या न करे, अगले साल वह इस स्कूल में नही पढ़ेगा। मित्तल साहब अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुए ।
अगले दिन पांच मार्च 1942को प्रधानाचार्य मित्तल साइकिल से स्कूल आ रहे थे। दो चपरासी भी उनके साथ थे।। पत्रकार स्वर्गीय राजेंद्र पाल सिंह कश्यप बताते थे कि घटना पूर्व नार्मल स्कूल के सामने की है। नार्मल स्कूल की बांउड्री की जगह उस समय खाई बनी थी। जमील ने मित्तल साहब की साइकिल को धक्का देकर खाई में गिरा दिया। जब तक मित्तल साहब संभलते चाकू से उन्हें बुरी तरह गोद दिया गया। इससे उनकी मौत हो गई । घटना पा्ंच मार्च सवेरे 9 −45 बजे की है । मित्तल साहब को पांच चाकू मारे गए।।बताया जाता है कि बाद में जमील को फांसी की सजा हुई
सन् का तो पता नही चला किंतु एक बार गांधी इंटर काँलेज बास्टा के पूर्व प्रधानाचार्य स्वर्गीय देशराज त्यागी चांदपुर से रिक्शा से बाष्टा जा रहे थे। उस समय इस मार्ग पर आने −जाने का साधन घोड़ा –तांगा या रिक्शा ही थी। करीब 15 साल पूर्व स्कूल छोड़ चुका उनका एक छात्र सड़क किनारे अपने खेत में काम कर रहा था। उसकी निगाह सामने से रिक्शा में आते देशराज सिंह त्यागी पर पड़ी। वह सड़क पर आया और त्यागी जी पर फावड़े से हमला कर दिया। फावडा सिर में लगा।त्यागी जी के सिर में गंभीर घाव आया पार वह बच गए।
नहटौर जैन कालेज के शिक्षकों ने तो कुछ अलग ही कार्य किया। लेखक ने इस काँलेज में 1975− 76 में अध्यापन किया। पुराने शिक्षक बताते थे कि तीन छात्रों ने किसी बात से नाराज विद्यालय के एक शिक्षक पर हमलाकर दिया। छात्र एक ही गांव के रहने वाले थे।
इसके बाद विद्यालय के शिक्षक घोड़े तांगे में सवार हो लाठी −डंडे लेकर छात्रों के गांव पहुंच गए। वहां एक हमलावर उन्हें मिल गया। वे उसे पीटते नहटौर ले आए और पुलिस को सौंप दिया। हमला करने वाले दो अन्य छात्र उन्हें नहटौर के बाजार में घूमते मिल गए।शिक्षकों ने उनकी जमकर पिटाई की ।बाद में पुलिस को सौंप दिया। इसके बाद अभी किसी छात्र की नहटौर जैन कालेज के शिक्षक से बदतमीजी करने की नही हुई।
ऐसे –ऐसे शिक्षक भी
बिजनौर निवासी स्व. बलवंत सिंह जैन जीवनभर गांधीवादी विचारों के पोषक रहे। उन्होंने छात्रों को निशुल्क पढ़ाया। उनके पास रहकर हिंदी के बड़े साहित्यकार जैनेंद्र कुमार ने मैट्रिक की तैयार की।
नई बस्ती बिजनौर में तत्कालीन विरेन्द्र तदुपरांत विजय टाकीज के पीछे स्व. बलवंत सिंह जैन उनके लगभग दो दर्जन मकान अब भी स्थित हैं। इनके अतिरिक्त उस समय डीएवी इंटर काँलेज भी उनके मकानों के ऊपर बने कमरों में ही चलता था ।बलवन्त सिंह जैन ने अपनी शिक्षा लंदन में प्राप्त की। वे गांधीवादी विचारों से प्रभावित हो गए । वे बिजनौर में रहकर गरीब और जरूरतमंद छात्रों को निशुल्क पढ़ाने लगे। अंग्रेजी −गणित के वे विशेषज्ञ थे। वे नि:सन्तान थे। उनकी लगभग 70 वर्ष की आयु में उनकी पत्नी का निधन हो गया था। तब से वह अपने ही भवनों में से एक में अकेले रहते थे। । उनकी सगी बहन सुनहरी देवी जैन शंभा बाजार बिजनौर में ही रहने वाले अपने छोटे पुत्र महेन्द्र कुमार जैन के पास रहती थीं। कभी-कभी वह अपने सबसे बड़े पुत्र सुन्दर लाल जैन (अशोक कुमार जैन उर्फ हुक्का बिजनौरी के पिता) के पास रहने के लिए नगीना चली जाती थीं। स्व. बलवंत सिंह जैन रक्षाबंधन के दिन लाठी टेकते-टेकते अपनी बहन से राखी बंधवाने शंभा बाजार अवश्य जाते थे। 1919 में जन्में स्व. बलवंत सिंह जैन पर 90 वर्ष की आयु में एक युवक ने किसी बात पर नाराज होकर उनके मकान में खड़े हैण्डपम्प की हत्थी से वार करके उन्हें घायल कर दिया था। उक्त युवक पर मुकदमा चलाया गया, लेकिन गांधीवादी होने के कारण उन्होंने अदालत में उस युवक को क्षमा कर उसके खिलाफ कोई कार्रवाई करने से इन्कार कर दिया। उन्होंने अपने सभी भवनों की देखरेख के लिए ‘महावीर सभा’ गठित करके सारी जिम्मेदारी उसे सौंप दी थी। संस्था के ठीक से काम न करने पर सारी प्रापर्टी ‘जैन समाज’ के नाम वसीयत की थी । जैन समाज ही अब उसका सर्वेसर्वा है। उनकी मृत्यु के उपरांत नगीना से आये उनके भांजे (स्व.) सुन्दर लाल जैन (हुक्का बिजनौरी के पिता) ने ही उनका अंतिम संस्कार किया था।
मुहल्ला अचानजान के रहने वाले शिक्षक अरूण बंसल बताते हैं कि मास्टर बलबंत सिंह उनके शिक्षक रहे। वे गेरवे( भगवा )रंग का मोटी टाट जैसा लम्बा कुर्ता पहनते थे । नीचे छोटा तौलिये सा बांधते थे, जो की दिखाई नहीं देता था l गुरू बलवंत सिंह अपने स्वयं को गाँधी जी का सहपाठी बताया करते थे। वे बताते थे कि गाँधी मेरी पिछली सीट पर बैठा करते थे lएक शिक्षक के रूप में मास्टर बलवंत सिंह जैन पूर्ण रूप से खरे उतारते है l उस समय बलवंत सिंह जैसा अंग्रेजी भाषा का शिक्षक शायद ही बिजनौर मे कोई दूसरा रहा हो l अंग्रेजी ही नहीं उन्हें संस्कृत और उर्दू भाषा पर भी सामान रूप से अधिकार था l सादगी भरा जीवन जीने वाले और सामाजिक, राजनैतिक दिखावे से परे, एक आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक और एक शांत स्वभाव के, सादा जीवन जीने वाले व्यक्ति रहे है l बलवंत सिंह जी के आकर्षक व्यक्तित्व का राज़ यह भी था की वे कभी बिजली की चक्की का पिसा आटा नहीं खाते थे।स्व. बलवंत सिंह जैन के पिता का नाम मुंशी गिरधारी लाल जैन था।
हिंदी के कुछ प्रमुख साहित्य सेवियों के इंटरव्यू में लेखक पद्म सिंह शर्मा कमलेश जैनेंद्र कुमार के इंटरवयू में पेज 67 पर कहतें हैं कि उनी शिक्षा हस्तिनापुर गुरूकुल में हुई।गुरूकुल से 1918 में वे दिल्ली चले गए।यहां उनकी माताजी एक महिला आश्रम की संचालिका थीं।माता जी ने उन्हें बिजनौर मास्टर बलवंत सिंह जी के पास पढ़ने भेज दिया। बिजनौर में रहकर उन्होंने प्राइवेट मैट्रिक की तैयारी की।1919 में उन्होंने पंजाब से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की।
अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
पांच सिंतबर 2022 के चिंगारी में प्रकाशित
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