एक दिन में पूरा नही हुआ अमानगढ़ के न्यू कार्बेट में विकसित होने का सफर

 एक दिन में पूरा नही हुआ अमानगढ़  के न्यू कार्बेट में विकसित होने का सफर

अशोक मधुप 

वरिष्ठ  पत्रकार

बिजनौर के अमानगढ़  वन को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने न्यू  कार्बेट के रूप में विकसित करने की अनुमति दे  दी।  पुरानी कहावत   दुनिया गोल है की तरह कार्बेट का  यह भाग उत्तरांचल और उत्तर प्रदेश के बंटवारे में  अलग  हुआ।कार्बेट का  नाम हटकर इस  वन का मूल नाम अमानगढ़  बच गया।  अब ये  अमानगढ़  वन क्षेत्र  पुनः  कार्बेट की जगह न्यू  कार्बेट बन  रहा है।  आज  इस  कार्य  का श्रेय कोई  भी   लें किंतु  इसके लिए 15 साल से  लोग प्रयासरत थे। उन  सबका प्रयास  रंग लाया।

उत्तर प्रदेश  से अलग  होकर   उत्तरांचल राज्य  बना। उत्तरांचल नाम के इस राज्य का  गठन दो नवंबर 2000 को  हुआ।इसके बाद शुरू हुआ संपत्तियों का बंटवारा।  बिजनौर जनपद का   अमानगढ़  वन क्षेत्र  कार्बेट में  शामिल था।ये  बंटवारे में  बिजनौर को मिल गया।पहले ये कार्बेट का   बफर जोन था। 

अमानगढ़ के अलग होते ही  बिजनौर के बुद्धिजीवी  इस प्रयास में लग गये कि उत्तर प्रदेश को मिले   अमानगढ़ को  मिनी कार्बेट के रूप में विकसित किया जाए।   इसके लिए प्रयास होते  रहे।  कभी  इसे टाइगर सफारी और कभी  ऐलीफैंट सफारी में विकसित करने के प्रयास  किये गए।प्रोजेक्ट बनकर  जाते  रहे और  ऊपर जाकर वे  कूड़े की टोकरी में पड़ जाते।

बड़ा  काम  बिजनौर आए प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी के. प्रवीणराव  ने किया। वे  स्वयं  बड़े  फोटोग्राफर हैं। उन्होंने इस  वन के वन्य प्राणियों की फोटोग्राफी की। उन्होंने 2009 में  अमानगढ़ को टूरिस्ट मैप पर लाने के लिए अमानगढ़ टूरिस्ट  जोन  नाम का फोल्डर छपवाया।  इस वन क्षेत्र  का उन्होंने नाम दिया गेट वे आफ कार्बेट।यह वन क्षेत्र लगभग 95 वर्ग किलोमीटर में फैला  है।  इसमें  वह सब  वन्य प्राणी मिलते हैं,  जो  कार्बेट में  पाए जाते हैं।अमानगढ़  के वन्य  प्राणी कार्बेट और कार्बेट के वन्य प्राणी निर्बाध अमानगढ़ आते –जाते हैं।कंडी रोड  कार्बेट और अमानगढ़  का बंटवारा करती है।  जिले के  पर्यटकों     को कंडी रोड पर घूमते कार्बेट के सैलानी भी  मिल जाते  हैं।इस लेखक ने अपने  ब्लाग bijnordistrict.blogspot.com पर नौ  फरवरी 2010  को यह  फोल्टर प्रकाशित किया।  शीर्षक दिया ,  कार्बेट क्यों जाते  हैं, बिजनौर आइये न।

श्री के. प्रवीणराव ने ही अमानगढ़  में बने रेस्ट   हाउस  को पर्यटकों के  आरक्षण  के लिए खोला।किंतु  अन्य  अधिकारी नही चाहते थे,  इसलिए ये योजना  आगे नही बढ़ सकी।न ही इसका  प्रचार प्रसार किया। वैसे  सचिव और मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी,  विधानसभा  या लोकसभा चुनाव में पर्यवेक्षक बन कर आए  बड़े अधिकारी अमानगढ़  जाते  और वहां रेस्ट  हाउस में परिवार सहित रूकते। प्रकृति  का आनन्द लेते।

देश और विदेश के  जाने −माने फोटोग्राफर तो  यहां  कई −कई दिन  रूकते  ।  वे  प्रकृति और वन्य  प्राणियों के फोटो खींचते।  वीडियो  बनाते।अमानगढ  के गेस्ट  हाउस में दो सूट हैं। यहां लाइट नही हैं।सिर्फ  सोलर की लाइट से ही  रोशनी और  पंखे  चलते  हैं।इस बंगले की सुरक्षा के लिए  सोलर फैंसिंग की हुई है।डाक बंगले  की पीठ और दक्षिण साइड से सटकर नदीं बहती हैं।ये  गेस्ट हाउस  नदी की काफी ऊचीं ढांग पर बसा  है।     

 कार्बेट का एक प्रवेश  द्वार कालागढ़ से भी है।इससे पर्यटकों के आने− जाने  की व्यवस्था थी।सवेरे  छह बजे और   दोपहर 12 बजे  । पर्यटक निर्धारित शुल्क  देकर चार घंटे   लिए कार्बेट में घूम सकते  है। यहां से पर्यटकों को अपने वाहन से जाना  पड़ता था। जिप्सी मिलने की व्यवस्था  नहीं थी। न ही गाइड  मिलता।इसका  प्रचार भी नहीं हुआ।इस पत्रकार को कई  बार  यहां  से कार्बेट में  जाने  का अवसर मिला। बाद में ये गेट बंद कर दिया गया।अब अमानगढ़ आने वाले पर्यटकों को घूमने के लिए जिप्सी और गाइड भी मिलेगा।

 बिजनौर के चिकित्सक  महिपाल सिंह तेबतिया और  उनकी पत्नी शोभना  तेबतिया का प्रदेश के  प्रमुख  सचिव पर्यटन श्री मुकेश  कुमार मेश्राम  से  परिचय   है।एक कार्यक्रम  में  इन्होंने मुकेश जी से बिजनौर के विकास के लिए  कुछ करने का अनुरोध  किया।उन्होंने कहा  क्या होना  है,इसका प्रोजेक्ट बनवाकर भिजवाओं।दोनों  से  इस  लेखक( अशोक मधुप) से बात  की।लेखक ने पूरे जिले के अनुसार प्रोजेक्ट बनाकर उन्हें दिया।इधर बिजनौर के जिलाधिकारी उमेश मिश्र बिजनौर के लिए इसके लिए  प्रयासरत थे।  दोनों के प्रयास रंग लाए और अमानगढ़  को न्यू कार्बेट के रूप में  विकसित करने का कार्य शुरू हुआ।

 डा तिबतिया दंपति प्रमुख  सचिव पर्यटन श्री मुकेश  कुमार मेश्राम की प्रशंसा  करते नही अघाता। वे कहतें हैं कि हमारा  कोई  खास  परिचय  नही था। मिले।  बात हुई।और  उन्होंने  जनपद के विकास  का बड़ा  रास्ता  खोले  दिया।वे श्री मुकेश  कुमार मेश्राम को बार− बार  साधुवाद देतें  हैं। आभार जताते हैं।

अमानगढ का  पर्यटन के लिए खुलना बिजनौर के लिए बड़ा  अहम दिन है। पर्यटन के मानचित्र पर आना बिजनौर के लिए ब़ड़ी बात है ।  अब देश−विदेश के पर्यटक यहां घूमने  आएंगे । जनपद की आय बढ़ेगी।अभी पर्यटकों के लिए 30 किलोमीटर की जंगल सफारी का ट्रैक निश्चित कर दिया गया है। अभी इसी पर पर्यटक घूम सकेंगे।  पूरा वन खुलने में समय  लगेगा।कंडी  रोड कार्बेट और बिजनौर के वन की सीमा  है।  इस पर पर्यटक जा  सकतें हैं।

जरूरत है कि ऐसी व्यवस्था  हो कि अमानगढ़  में आए पर्यटकों के लिए कार्बेट के द्वार भी  खुलें। यहां के पर्यटक कार्बट में घूम सकें।  कार्बेट के अमानगढ़ में भी आ जा सकें। कंडी रोड  से सटा कार्बेट  की झिरना  रेंज का  डाक बंगला  हैं।यहां  अच्छी कैंटीन है। इस पत्रकार ने कई  बार इस डाक बंगले की कैंटीन पर रूककर   चाय −काफी पी है। यहां तक जाने की व्यवस्था  तो होनी ही चाहिए। वैसे अभी शुरूआत  है।रामनगर की तरह जल्दी ही  यहां  रिसोर्ट  बन  जांएगे।एक दो तो अभी भी हैं।  


फीस 

अमानगढ़ घूमने के लिए एक जिप्सी में पांच लोगों को जाने की अनुमति होगी । पर्यटकों को जिपसी के  लिए 2280 रुपये का शुल्क  लगेगा। वहीं  प्रति पर्यटक 200 रुपये, एक गाइड के लिए 400 रुपये शुल्क देना होगा।इस वन क्षेत्र में 27 बाघ , 47 गुलदार और सौ से ज्यादा हाथी हैं। जगह –जगह यहां पर चीतल, हिरण के दर्जनों की संख्या में झुंड दिखाई पड़ते हैं। मोर ,बंदर और लंगूर भी यहां  बहुतायत में हैं।वन अधिकारियों के अनुसार अमानगढ़ के एरिया  में सफेदधारी वाले लकड़बग्घे भी मिले थे। ये दुर्लभ प्रजाति के होते हैं। इनके होने का पहले पता तक नहीं था। दो साल पहले किसी वाहन की चपेट में आकर एक लकड़बग्घे  के मरने  से  इनका  पता  चला।


12 ग्रामों को पर्यटन ग्राम विकसित होंगे

 बड़ी बात यह है कि  जनपद के 12 ग्रामों को पर्यटन ग्राम के रूप में विकसित किया जाएगा।  इन 12  ग्राम में ताजपुर, दारानगर, धीमारपुरा, पर्वतपुर, काशीवाला, रावली, पैजानिया, खेड़ीपुर हेमराज (गंगा बैराज), कुंदनपुर टीप, सुल्तानपुर (मथुरापुर मोड), खेड़की व नगीना है। 

प्रदेश ने जनपद के विकास के लिए यह बड़ा  काम किया। जरूरत है कि विकसित  किए जा  रहे पर्यटक गांव के लिए  आने − जाने की अचछी सड़के हों।गांव  की एतिहासिकता  की जानकारी देने के लिए गांव में गाइड तैयार किए जांए। इनकी दर  निर्णारित   हों।इन गांव के गाइड को प्रशासन स्तर से गाइड का पहचान  पत्र मिले।  ताकि पर्यटक किसी गलत व्यक्ति से  न ठगें जाएं।  बिजनौर शहर में मोर बहुत हैं।अकेले जिलाधिकरी की कोठी में डेढ़  सौ के आसपास मोर हैं। आज मोर गांव के जंगल से भी गायब हो रहा है। बिजनौर के  इन मोर को संरक्षण देने की जरूरत है। बैराज पर काफी समय  से प्रतिदिन शाम को गंगा  आरती होती है। इसे  भव्य  रूप देने के लिए काम हो।गंगा बैराज के बंदे के डूब वाले क्षेत्र में वाटर स्पोर्टस विकसित कर इसे पर्यटक केंद्र  बनाया जाए।  इसके लिए  जरूरी है कि अलग −अलग क्षेत्र के विकास के लिए अलग− अलग  ट्रस्ट हों।कण्व आश्रम के विकास के लिए पदेन डीएम की अधयक्षता में ट्रस्ट बने।  वह ही इसकी देख−रेख करें।

हरिद्वार को शुक्रताल−  बिजनौर− विदुरकुटी 

सेंधवार −हस्तिनापुर को गंगा एक्सप्रेस से  जोड़ने और  बनाने का काम जल्दी शुरू हो, ताकि  हरिद्वार से गंगा के किनारे बसे स्थलों को इस एक्सप्रेस वे  से जोड़ा जा सके।    

अशोक मधुप





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