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Showing posts from January, 2025

हरिद्वार कुंभ में जब तैमूर लंग ने किया था कत्ले आम 30 जनवरी 2025

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अशोक मधुप वरिष्ठ पत्रकार आज से लगभग 627 साल पहले तैमूर लंग ने हरिद्वार कुंभ में बुरी तरह कत्ले आम किया था। तैमूर ने  कुंभ में आए 4282 श्रद्धालुओं को मार डाला था। यह कत्ले आम देख  नागा सन्यासी उसके मुकाबले के लिए आएं।इन नागा संयासियों ने तैमूर लंग के 3500 खूंखार लडाके मार डाले। उधर जाटों की खाप पचांयत की सेना भी मेरठ से तैमूर का पीछाकर रही थी। उसने हरिद्वार के पास पथरी में तैमूर का मुकाबला किया  और भारी तबाही मचाई ।अपने खेमें में भारी तबाही मचता देख यहां से तैमूर लंग दुम दबाकर भागा और 17 मार्च को कांगड़ा पंहुच गया।   तैमूर लंग ने मार्च सन् 1398 ई में भारत पर 92 हजार  घुड़सवारों की सेना से  आक्रमण किया । दिल्ली में लूटमार और कत्ले आम कर वह मेरठ  पंहुचा। मेरठ के किलेदार इलियास को हराकर तैमूर ने मेरठ में भी तकरीबन 30 हज़ार हिंदुओं को मारा।यह सब करने में उसे महज़ तीन महीने लगे। इस बीच वह दिल्ली में केवल 15 दिन और मेरठ में एक सप्ताह  रहा।तैमूर का मकसद केवल भारत को लूटना था, इसलिए वह वापस अपने देश लौट गया। दिसंबर 1398 में  तैमूर दिल्ली के पास प...

हरिद्वार कुंभ में जब तैमूर लंग ने किया था कत्ले आम

  हरिद्वार कुंभ में जब तैमूर लंग ने किया था कत्ले आम अशोक मधुप वरिष्ठ पत्रकार आज से लगभग 627 साल पहले तैमूर लंग ने हरिद्वार कुंभ में बुरी तरह कत्ले आम किया था। तैमूर ने   कुंभ में आए 4282 श्रद्धालुओं को मार डाला था। यह कत्ले आम देख   नागा सन्यासी उसके मुकाबले के लिए आएं।इन नागा संयासियों ने तैमूर लंग के 3500 खूंखार लडाके मार डाले। उधर जाटों की खाप पचांयत की सेना भी मेरठ से तैमूर का पीछाकर रही थी। उसने हरिद्वार के पास पथरी में तैमूर का मुकाबला किया   और भारी तबाही मचाई ।अपने खेमें में भारी तबाही मचता देख यहां से तैमूर लंग दुम दबाकर भागा और 17 मार्च को कांगड़ा पंहुच गया।   तैमूर लंग ने मार्च सन् 1398 ई में भारत पर 92 हजार   घुड़सवारों की सेना से   आक्रमण किया । दिल्ली में लूटमार और कत्ले आम कर वह मेरठ   पंहुचा। मेरठ के किलेदार इलियास को हराकर तैमूर ने मेरठ में भी तकरीबन 30 हज़ार हिंदुओं को मारा।यह सब करने में उसे महज़ तीन महीने लगे। इस बीच वह दिल्ली में केवल 15 दिन और मेरठ में एक सप्ताह   रहा। तैमूर का मकसद केवल भारत को लूटना था , इसलि...

रुक नहीं रही पशुओं के प्रति क्रूरता

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जिंघाला जाटों का महत्वपूर्ण स्थल है मालदेवता

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भारतीय सभ्यता का उद्गम स्थल उत्तराखंड

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मायावती का कोठी विवाद साप्ताहिक युवा रोशनी

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कपास उत्पादन की जगह गन्ने ने ली अमर उजाला 7 जनवरी2000

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नूरपुर थाने पर झंडा फहराने के एक आरोपी नारायण सिंह की जवानी

  नूरपुर थाने पर झंडा फहराने के एक आरोपी नारायण सिंह की जवानी सम्भवतः २६जुलाई १६४२ को जिला - काँग्रेस की बैठक में बाबू गोविन्द सहाय ने यह संकेत दिया था कि ८ अगस्त १२४२ को बम्बई में होने वाली राष्ट्रीय काँग्रेस कार्यकारणी की बैठक में करो   या मरो , अंग्रेज भारत छोड़ो का प्रस्ताव पारित होना है। हो सकता है कुछ नेता पहले या उसी दिन पकड़ लिये जाएं।   आप लोगों को भी पुलिस नौ अगस्त को पकड़‌ कर बन्द कर दें, जहाँ तक हो   गिरफ्तारी से बचना , और काम करते रहो , ताकि आन्दोलन जल्दी बंद   न हो। चलता रहे।   मुझे , किशोरी सिंह ,   और चन्द्रपाल सिंह   को भी दरोगा ने मेघराज सिंह मुखिया के मकान पा‌र बुलवाया और कहा आप लोग गिरफ्तार हो   । थाने चलो। मैंने   कहा हमारा वारंट दिखायें , दरोगा वारंट न दिखा सका ।तब हमने   उसके साथ जाने को   मना   कर दिया ।दरोगा वापस नूरपुर चता आया ।   इसके बाद नूरपुर थाने पर तिरंगाधवज फहराने को प्रोग्राम बनाया । इसके लिए 16 अगस्त की तारीख   निश्चित   की गई। इस कार्यक्रम का   नूरपुर क्षेत्र मे...

बिजनोंर मेरठ रेल पथ प्रस्ताव 14−12 ा−1996 अमर उजाला

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बिजनौर के 1990 के दंगे में 87 मरे

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धामपुर का रंगमंचीय सफर : अतीत से आज तक

  अशोक मधुप  शताब्दी का सफर पूरा हो रहा है। नाटक और नौटंकी के युग से हम टेलीविजन,सिनेमा और सोशल मीडिया के सुनहरे पड़ाव तक आ पहुंचे हैं, लेकिन इन तीनों माध्यमों की चकाचौंध के बावजूद रंगमंचीय दुनिया ने अपना वजूद बरकरार रखा है। रंगमंचीय सफर में धामपुर का अपना इतिहास रहा है। इस यात्रा में उतार चढ़ाव आते रहे, लेकिन यह सफर आज भी कुछ मजबूत कंधों के सहारे एक सुनहरे भविष्य की ओर अग्रसर है। धामपुर में सन् 1930-36 के बीच गर्मियों की रातों में खुले मंचों पर रात भर रासलीलाएं और नौटंकी कंपनियों द्वारा नौटंकी नाटक आयोजित किए जाते थे। इनमें अभिनय करने वाले स्त्री पुरुष दोनों होते थे। नाटकों की नायिका प्रायः यहां के रईस घरानों द्वारा दी गई चुनरी, लहंगा आदि धारण करती थीं। तब कोई भी इसे बुरा नहीं मानता था। सारा समाज समरसता में डूब हुआ था। रंगमंचीय इतिहास में पहला नाम पं फकीरचंद्र 'केशव' का है। केशव जी स्वयं नाटक लिखते थे। उनकी शैली पारसी थियेटर कंपनियों या प्रदर्शित किए जाने वाले नाटकों जैसी संवाद और शायरी से युक्त थी। इस शैली का प्रयोग में एषेोधाम तथा अन्य नाटक-लेखक किया करते हैं। केशव जी निर्द...

दरगाह बन गई कप्तान साहब की मजार

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